गायत्री महामंत्र के बिना किसी भी देवता की उपासना नहीं होती सफल

सनातन धर्म में पूजा-आराधना और उसमें उपयोग होने वाले मंत्रों का बहुत महत्व है। इन मंत्रों में कुछ सामान्य तो कुछ बीज मंत्र होते हैं। बीज मंत्र यानी किसी विशेष भगवान या देवी का प्रमुख मंत्र। इसी तरह देवी गायत्री का भी अपना मंत्र है। देवी गायत्री से ही चारों वेदों की उत्पति हुई है, इसलिए गायत्री मंत्र वेदों का सार है। इसी कारण चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है और अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिल जाता है।

माता गायत्री का यह महामंत्र ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुव: स्व: और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। यह मंत्र ही अपने आपमें श्री गायत्री देवी का स्वरूप है, क्योंकि गायत्री वेदों की जननी हैं और वे पापों का नाश करने वाली हैं। गायत्री के अलावा अन्य कोई पवित्र करने वाला मंत्र नहीं है।

गायत्री मंत्र की महिमा का इस बात से पता चलता है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से लेकर ऋषि-मुनियों, साधु-महात्माओं और अपना कल्याण चाहने वाले लोगों ने इस मंत्र का आश्रय लिया है। यह मंत्र यजुर्वेद व सामवेद में मौजूद है, लेकिन सभी वेदों में किसी-न-किसी संदर्भ में इसका कई बार उल्लेख आया है। गायत्री का शाब्दिक अर्थ है गायत्त्रायते अर्थात गाने वाले का त्राण करने वाली। गायत्री मंत्र गायत्री छंद में रचा गया अत्यंत प्रसिद्ध मंत्र है। इसके देवता सविता हैं और ऋषि विश्वामित्र हैं।

गायत्री मंत्र से पहले ॐ लगाने का नियम है। इसे प्रणव कहा जाता है। प्रणव परब्रह्म परमात्मा का नाम है। ओम् के अ+उ+म् इन तीन अक्षरों को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रूप माना गया है। गायत्री मंत्र से पहले ॐ के बाद भू: र्भुव: स्व: लगाकर ही मंत्र का जप करना चाहिए। ये गायत्री मंत्र के बीज हैं। बीज मंत्र का जप करने से ही साधना सफल होती है। अत: ॐ और बीजमंत्र सहित पूर्ण गायत्री मंत्र का अर्थ इस प्रकार है- पृथ्वीलोक, भुव:लोक और स्वर्गलोक में व्याप्त उस श्रेष्ठ परमात्मा (सूर्यदेव) का हम ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ कर्मों की ओर प्रेरित करें।

गायत्री मंत्र का जप करने का भी अपना तरीका है। प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व गायत्री मंत्र का जप खड़े होकर तब तक करें जब तक सूर्य भगवान के दर्शन न हो जाएं। संध्याकाल में गायत्री का जप बैठकर तब तक करें जब तक तारे न दिख जाएं।ImageSource

गायत्री मंत्र का एक हजार बार जाप सबसे उत्तम माना गया है। गायत्री मंत्र तीनों देव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश का सार है। श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि गायत्री छंदसामहम् अर्थात गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं। वास्तव में अन्य किसी भी मंत्र का जाप करने में या देवता की उपासना में तभी सफलता मिलती है, जब पहले गायत्री मंत्र द्वारा उस मंत्र या देवता को जाग्रत कर लिया जाए। गायत्री मंत्र का जप करने से सभी देवताओं का आशीष मिलता है और घर में खुशहाली के साथ ही महापुण्य की प्राप्ति होती है।