चित्रकूट के पथपर रघुवर

अयोध्या में श्री राम के वन गमन पर ननिहाल में बैठे भरत जी का मन भी व्याकुल होता है। हृदयों के आत्मीय संबंध का यह कमाल का उदाहरण है जिसे आज की भाषा में हम टेलीपैथी कहते हैं। यह तभी संभव है जब आपस का प्रेम संबंध सच्चा हो और इसका अनुभव आज भी हम अपने सच्चे रिश्ते में करते रहते हैं।

प्रयागराज से चित्रकूट की ओर चलते चलते तीनों बनवासी बीच के किसी गांव में थोड़ी देर के विश्राम के लिए रुकते हैं तो वहां लक्ष्मण जी अपनी अंजलि में जल भरकर लाते हैं और राम जी के चरण धोते हैं उसके बाद अपने कंधे के पटूके से राम जी के चरण पोंछते हैं। 

यहां राम जी के प्रति, सीता जी के प्रति, लक्ष्मण जी का सेवा भाव और प्रेमभाव देखिए। बीहड़ वन की दुखदाई यात्रा से वे भी उतने ही थके हुए हैं फिर भी राम जी के चरण धोना, चरण दबाना, भाई के प्रति भाई के प्रेम का ये सर्वोत्तम उदाहरण है। वहीं गांव की स्त्रियां सीता जी से उनका परिचय पूछती हैं, बार-बार पूछती हैं तब कहीं जाकर सीता जी बड़े संकोच में अपना और लक्ष्मण जी का परिचय उन्हें देती हैं। यही आज के समय में होता तो लोग सबसे पहले अपना परिचय देकर अपना रुतबा दिखाने का प्रयास करते। 

Jai Shriram 🙏#goodmorning

Gepostet von Arun Govil am Mittwoch, 27. Mai 2020

परिचय होने पर गांव वाले राजा दशरथ और महारानी कैकेई को दोष देते हैं कि ऐसे सुकुमार बच्चों को वन कैसे भेज दिया? इस पर राम कड़ा विरोध करते हैं और यही कहते हैं ‘हम स्वयं अपनी इच्छा से ही वन में आए हैं’। मतलब यह कि राम को अपने माता-पिता के लिए किसी के भी मन में कोई दुर्भावना बर्दाश्त नहीं है।

वाल्मीकि मुनि के आश्रम में महर्षि वाल्मीकि, राम के अलौकिक कार्यों को गिना कर उन्हें भगवान साबित करने में लगे हैं परंतु राम जी बार-बार स्वयं को एक सामान्य इंसान बताकर उन्हें प्रणाम कर रहे हैं। 

ये है राम का निर अभिमानी स्वभाव और विनम्रता। स्वयं द्वारा किए हुए किसी भी बड़े काम का कोई अभिमान नहीं, कोई क्रेडिट नहीं लेना है। वहीं आज हम छोटे से छोटा काम करके भी बड़ा से बड़ा क्रेडिट लेने की दौड़ में लगे रहते हैं।

चित्रकूट के ऋषि-मुनियों और स्थानीय निवासियों के सहयोग से बनाई हुई पर्णकुटी में प्रवेश करने से पहले रामजी यज्ञ हवन करते हैं उसके बाद पर्णकुटी में प्रवेश करते हैं। यह एक संकेत है हमारी उस परंपरा की ओर जो वातावरण को शुद्ध बनाने की क्रिया से संबंधित है। हमें जहां रहना है उस स्थान को हमेशा साफ सुथरा और कीटाणु, जीवाणु, विषाणु से मुक्त रखना है तो यज्ञ हवन अवश्य करना चाहिए। यह एक बहुत ही प्रमाणित वैज्ञानिक क्रिया है जिसे आज हम धर्म या संप्रदाय से जोड़कर अपने ही स्वास्थ्य और सुख से खिलवाड़ कर रहे हैं।

जय श्रीराम🙏#goodmorning

Gepostet von Arun Govil am Sonntag, 17. Mai 2020

पर्णकुटी में प्रवेश करने से पहले राम जी – सीता जी और लक्ष्मणजी सहित वहां उपस्थित सन्त समुदाय और दिखने वाले न दिखने वाले सभी जीवो को प्रणाम करते हैं। यह है राम का उदार चरित्र जो हर जीव का सम्मान करता है।

पर्णकुटी के अंदर पूजा के स्थान पर अपनी मातृभूमि की मिट्टी को रखकर उसकी पूजा करते हैं और प्रणाम करते हुए कहते हैं- ‘मां मैं जहां भी रहूं मेरे हृदय में सदा तेरा वास रहे। मेरा यह शीश सदा तेरे चरणों में झुका रहे।

मातृभूमि से दूर रहकर भी मातृभूमि का ये प्रेम एक उदाहरण है। स्वदेश प्रेम की यह भावना हर मानव के मन में बहुत ही आवश्यक है और आज तो इसकी आवश्यकता सबसे अधिक है। उधर अयोध्या में सुमंत्र के अकेले वापस आने पर दशरथ जी राम विरह में प्राण त्याग देते हैं। दशरथ जी द्वारा युवा अवस्था में गलती से किया गया एक बुरा कर्म उनकी मृत्यु का कारण बन गया।

रामायण का यह प्रसंग हमें यह सीख देता है कि हमारे हर अच्छे बुरे कर्म का फल हमें हर हाल में मिलना ही है। किसी भी उपाय से कोई भी अपने कर्मों के दंड से बच नहीं सकते भले वह चक्रवर्ती सम्राट ही क्यों ना हो।