एक महीने पहले यानी 13 जुलाई 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने पद्मनाभस्वामी मंदिर पर फैसला सुनाकर देशवासियों का ध्यान अपनी ओर खींचा. दरअसल, पिछले कई वर्षों से कोर्ट में लंबित केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर और उसकी संपत्तियों के अधिकार का मामला त्रावनकोर के राज परिवार और सरकार के बीच चल रहा था. और सरकार इस मंदिर को अपने कब्जे में लेना चाहती थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से सरकार के मंसूबो पर पानी फिर गया और फैसला राज परिवार के पक्ष में चला गया.
जानकारी के अनुसार, मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का मुद्दा हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है, करीब पांच साल पहले 31 अक्टूबर 2015 के दिन प्रजा टीवी द्वारा एक वीडियो शेयर किया गया. जिसमें देखा गया कि, कर्नाटक के मंदिरों से पुजारी दान पेटी हटा रहे हैं. इसपर पुजारियों ने बताया कि, मंदिरों में भक्तों द्वारा चढ़ावा आता है और उसे अगर हिंदुओं के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता तो मंदिरों में दानपेटियों को भी रखने का अधिकार नहीं है. और अब फिर से वही वीडियो चर्चा में आ गया है. इस पर लेखिका अद्वैता काला ने अपने ट्विटर अकाउंट से यह वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि, कर्नाटक के पुजारियों ने मंदिर से दानपेटी हटाना शुरू कर दिया है. और यदि भक्तों का पैसा हिन्दुओं के लिए नहीं तो दान पेटी क्यों? क्या मंदिर कभी सरकारी नियंत्रण से मुक्त होंगे?
कर्नाटक के पुजारियों ने मंदिर से दान पेटी हटाना शुरू कर दी है। कहा यदि भक्तों का पैसा हिंदुओं के लिए प्रयोग नहीं हो तो दान पेटी क्यों?
मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त होएंगे? pic.twitter.com/SX86K7UJvp— अद्वैता काला #StayHome 😷 (@AdvaitaKala) August 8, 2020
इस तरह की समस्या केवल एक राज्य की ही नहीं है. देश के अन्य राज्य में भी इस तरह की समस्या देखी जा सकती है. जिन राज्यों में सेक्युलर सरकारें हैं, अक्सर वहां से इस तरह की ख़बरें सामने आती है. भारत की सेकुलर-धर्मनिरपेक्ष सरकारों ने सबसे ज्यादा जमीनों वाले चर्च और वक्फ बोर्ड को तो सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया हुआ है, लेकिन मंदिरों की जमीनें समय-समय पर, किसी न किसी बहाने से बिकती रहीं हैं. यहाँ तक कि, दिन रात मंदिर में रहकर भगवान की सेवा करने वाले पुजारियों को उचित वेतन तक नहीं मिलता.