वेदों को शुद्धता से पढ़ने, बोलने और समझने के लिए वेदों के छह अङ्गों का निर्धारण किया गया है जिन्हें छह शास्त्र या वेदांग कहते हैं। इनके नाम हैं-
1-शिक्षा, 2-कल्प, 3-निरुक्त,
4 -व्याकरण, 5 -छंद, 6-ज्योतिष।
छन्द: पादौ तु वेदस्य, हस्तौ कल्पोsथ पठ्यते,
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोतमुच्यते।
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य, मुखं व्याकरणं समृतम्।
तस्मातसाङमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते।
अर्थात छन्द को वेदों का पाद (पैर), कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक तथा व्याकरण को मुख कहा गया है।
वेदांग अथवा छह शास्त्र में से एक ‘शिक्षा’ का परिचय इस प्रकार है –
1-शिक्षा:-
वेद मंत्रों के स्वर, वर्ण (अक्षर) , शब्द आदि के शुद्ध उच्चारण की पद्धति को समझाने के लिए हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों द्वारा जिस ग्रंथ का विधान किया गया उसे वेदांग के अंतर्गत ‘शिक्षा’ कहते हैं। वर्तमान समय में ‘पाणिनीय शिक्षाशास्त्र’ वेदांग के रूप में विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है।
स्वर और व्यंजन ये दो प्रकार के वर्ण (अक्षर) होते हैं जिनका उच्चारण – ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत अथवा उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित इस प्रकार से होता है।
वर्ण (अक्षर) उच्चारण के आठ स्थान हैं – जिह्वा, कण्ठ, मूर्धा, जिह्वामूल, दन्त, नासिका, ओष्ठ और तालू।
उच्चारण के इन आठ स्थानों में से किस स्थान से किस वर्ण (अक्षर) का उच्चारण होता है इसका विवरण निम्नवत है–
कण्ठ: – अकुहविसर्जनीयानां कण्ठ: ( अ क ख ग घ ङ विसर्ग= 🙂
तालु: – इचियशानां तालु: ( च छ ज झ ञ य श)
मूर्धा – ऋटुरषाणां मूर्धा (ऋ ट ठ ड ढ ण र ष)
दन्त: – लृतुलसानां दन्त: ( लृ त थ द ध न ल स)
ओष्ठ: – उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ ( उ प फ ब भ म उपध्मानी प फ)
नासिका – नासिकानुस्वारस्य (ं)
नासिका च: – ञमङणनानां नासिका (ञ म ङ ण न )
कण्ठतालु: – एदैतो: कण्ठतालु: (ए ऐ)
कण्ठोष्ठम् – ओदौतो: कण्ठोष्ठम् (ओ औ)
दन्तोष्ठम् – वकारस्य दन्तोष्ठम् (व)
जिह्वामूलम् – जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् (जिह्वामूलीय क ख)
मंत्रों के पठन-पाठन में किस वर्ण (अक्षर) का उच्चारण कहां से और किस प्रकार होना चाहिए यही ‘शिक्षा’ का मूल विषय है। पाणिनीय शिक्षा शास्त्र में इसे ‘वर्णोच्चार शिक्षा’ भी कहते हैं
देवनागरी की यह वर्ण (अक्षर ) व्यवस्था परम विशुद्ध, परम वैज्ञानिक लिपि है जिसका लेखन भी विलक्षण है और उच्चारण भी विलक्षण है। इन वर्णों (अक्षरों) का, इनसे बने शब्दों का, इन शब्दों से बने मंत्रों का शुद्ध स्वर से उच्चारण किया जाए तो हमारे शास्त्रों में कहा गया मंत्रों का हर लाभ कोई भी मनुष्य प्राप्त कर सकता है।