जब मगरमच्छ ने निगल लिया भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र को…

भगवान श्रीकृष्ण एक पराक्रमी योद्धा थे। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने भले ही अस्त्र ना उठाया हो लेकिन उन्होंने कई राक्षसों का अंत किया है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की तरह उनके पुत्र प्रद्युम्न भी एक पराक्रमी योद्धा थे। उन्होंने मायावी दैत्य शम्बरासुर का अंत किया था। साथ ही महाभारत के युद्ध में भी अपने शौर्य का प्रदर्शन किया था।

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शास्त्रों के अनुसार प्रद्युम्न असल में कामदेव के अवतार थे। मान्यता है कि एक बार रूद्र नाम के दैत्य का अंत करने के लिए सभी देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे थे। लेकिन भगवान शिव उस समय समाधि में लीन थे। तब कामदेव ने पुष्प बाण चलाकर भगवान शिव की समाधि को भंग कर दिया था। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उनके नेत्र से निकली अग्नि से कामदेव भस्म हो गए। जब कामदेव की पत्नी रति को इसके बारे में पता चला तो वह भगवान शिव के पास जाकर विलाप करने लगी। तब भगवान शिव ने उनसे कहा कि द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म होगा। श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में कामदेव का जन्म होगा। ऐसे में रति अपने पति की प्रतीक्षा करने लगी।

द्वापर युग में शम्बरासुर नाम का राक्षस रहता था। उसने रति को अपने घर में रसोई का काम करने के लिए रख लिया। जब भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी की संतान के रूप प्रद्युम्न का जन्म हुआ तो शम्बरासुर ने प्रद्युम्न का अपहरण करके उन्हें एक सागर में फेंक दिया। क्योंकि शम्बरासुर को पता था कि श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की संतान उसकी मौत का कारण बनेगी। सागर में एक मगरमच्छ ने प्रद्युम्न को निगल लिया। इसके बाद वह मगरमच्छ मछुआरों के जाल में फंस गया। मछुआरों ने मगरमच्छ को ले जाकर शम्बरासुर को भेंट कर दिया। शम्बरासुर ने मगरमच्छ को पकाने के लिए रसोई में भिजवा दिया।

रसोई में जब रति ने मगरमच्छ का पेट फाड़ा तो उसमें से एक बालक निकला, जिसकी सांसे चल रही थी। रति ने तुरंत ही पहचान लिया कि वह बालक उसके पति कामदेव है। रति ने प्रद्युम्न की अच्छे से देखभाल की और प्रद्युम्न को ऐसी महामाया विद्या सिखाई, जिससे सभी तरह की मायाओं का नाश किया जा सके। युद्ध की विद्याओं में निपुण होने के बाद प्रद्युम्न ने शम्बरासुर को युद्ध के लिए ललकारा। शम्बरासुर ने प्रद्युम्न का अंत करने के लिए कई मायाओं का प्रयोग किया लेकिन रति की शिक्षा के कारण प्रद्युम्न का कुछ नहीं हुआ। प्रद्युम्न ने एक-एक करके शम्बरासुर की सभी मायाओं का नाश कर दिया और फिर अपनी तलवार से उसका अंत कर दिया। शम्बरासुर का अंत करने के बाद प्रद्युम्न और रति द्वारका पहुंचे।