देव दीपावली है आज, देवलोक से सभी देवता पधारते हैं आज वाराणसी में

आज 18 नवम्बर 2021, गुरूवार के दिन देव दीपावली का त्यौहार मनाया जा रहा है. आज वाराणसी का दृश्य अद्भुत होता है. कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. दीपावली से ठीक 15 दिन बाद ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है. आज के दिन पूरी काशी को सजाया जाता है. आज यहाँ के 84 घाटों पर लाखों दीप जलाये जाते हैं. हर तरफ वातावरण जगमगाता है.

देवता कार्तिक पूर्णिमा के दिन पृथ्वी पर आते हैं और दिवाली मनाते हैं. ये पर्व मुख्य रूप से वाराणसी के गंगा नदी के तट पर मनाया जाता है. धार्मिक महत्व है अनुसार देव दीपावली के दिन देवी-देवता गंगा नदी के तट पर पवित्र स्नान करने के लिए आते हैं.

देवी-देवताओं के सम्मान के लिए वाराणसी का पूरा घाट मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है. रात के समय वहां दीयों से घाट को रोशन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं, इस दिन नदी में दीपदान करने से लंबी आयु की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत और पूजन आदि किया जाता है. साथ ही, इस दिन तुलसी विवाह समारोह का समापन भी किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन तुलसी पूजन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.

 

देव दीपावली तिथि और शुभ मुहूर्

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 18 नवंबर, गुरुवार दोपहर 12 बजे से शुरू होकर
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 19 नवंबर, शुक्रवार दोपहर 02:26 मिनट तक है.

प्रदोष काल मुहूर्त: 18 नवंबर सायं 05:09 से 07:47 मिनट तक

पूजा अवधि: 2 घंटे 38 मिनट

 

हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. दीवाली के पंद्रह दिन बाद देव दिवाली मनाये जाने के कारण इस दिन का विशेष महत्त्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवलोक से सभी देवता वाराणसी यानि महाकाल की नगरी काशी में पधारते हैं. इसलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को काशी में बहुत साज-सज्जा की जाती है. गंगा के घाटों पर अलौकिक दृश्य दिखाई देते हैं.

देव दीपावली का धार्मिक महत्त्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से तीनों लोकों में सभी बहुत त्रस्त हो चुके थे. उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने हेतु सभी देवताओं ने मिलकर भगवान् शकर की प्रार्थना की, और शिवजी ने उस दुष्ट राक्षस का अन्हार किया. जिस दिन ये ये घटित हुआ उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी. और उसके बाद सभी देवतागण भगवान शिव के साथ काशी पहुंचे और दीप जलाकर खुशियां मनाई. कहते हैं कि तभी से ही काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती रही है. इस दिन  दीप दान का बहुत महत्व माना गया है. इसलिए इस दिन विशेष रूप से दीपदान किया जाता है.