भारत के गौरवशाली किले: देवगिरि दुर्ग शामिल है महाराष्ट्र के सात अजूबों में

भारत में किलों का लंबा इतिहास है। देश के लगभग हर इलाके में कोई न कोई किला मौजूद है। ये किले देश का इतिहास के गवाह हैं। यदि महाराष्ट्र के किलों की बात करें तो दौलताबाद के किले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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दौलताबाद शहर को देवगिरि नाम से भी पहचाना जाता है, जहां किला है। यह किला महाराष्ट्र के सात अजूबों में गिना जाता है। यह भारत के सबसे मजबूत किलों में शामिल है। यह तीन मजिला है। इसमें कुछ कमरे सोने के लिए, कुछ मनोरंजन के लिए और कुछ मीटिंग हॉल के रूप में इस्तेमाल होते थे।

देवगिरि दक्षिण भारत का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में 20 डिग्री उत्तर अक्षांश तथा 75 डिग्री पूर्व देशांतर में मौजूद है। भीलम नामक राजा ने इसे ग्यारहवीं सदी में बसाया था और उसी काल से दो सौ वर्षों तक हिंदू शासकों ने देवगिरि पर शासन किया। चौदहवीं सदी से यह नगर अन्य शासकों के अधिकार में चला आया।

मथुरा के यादव कुल से भी देवगिरि का संबंध है। इसी कारण यहां का राजवंश ‘यादव’ कहलाया। हेमाद्री रचित ‘ब्रतखंड’ में तथा पुराने दस्तावेजों के आधार पर दृढ़प्रहार देवगिरि के यादव वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष माना जाता है। भीलम शक्तिशाली नरेश था, जिसने होयसल, चोल तथा चालुक्य राज्यों पर हमला किया था। उसके उत्तराधिकारी सिंघण ने इसे बड़े साम्राज्य का रूप दे दिया। युद्ध के कारण देवगिरि राज्य खानदेश से अनंतपुर (मैसूर) तक तथा पश्चिमी घाट से हैदराबाद तक फैल गया था।

यादववंश भारतीय इतिहास में बहुत प्राचीन है और वह अपना संबंध प्राचीन यदुवंशी क्षत्रियों से मानता है। राष्टकूटों और चालुक्यों के समय में यादववंश के राजा अधीनस्थ सामंत राजाओं की स्थिति रखते थे। इसके बाद जब चालुक्यों की शक्ति घट गई तो वे स्वतंत्र हो गए और मौजूदा औरंगाबाद के क्षेत्र में स्थित देवगिरि (दौलताबाद) को केंद्र बनाकर उन्होंने अपनी उन्नति की शुरुआत की।

यदुवंशी अहीरों के मजबूत गढ़ खानदेश से प्राप्त वस्तुओं को बहुचर्चित ‘गवली राज’ से जोड़ा जाता है। इसके साथ ही पुरातात्विक रूप से इन्हें देवगिरि के यादवों से जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ‘देवगिरि के यादव’ भी अभीर (अहीर) थे। यादव शासन काल में कई छोटे-छोटे राजाओं का जिक्र भी मिलता है, जिनमें से अधिकांश अभीर या अहीर होते थे। खानदेश में आज तक इस समुदाय की आबादी बड़ी संख्या में मौजूद है।

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तेरहवीं सदी के देवगिरि नरेश कृष्ण का नाम कई पुराने दस्तावेजों में मिलता है। कृष्ण के पुत्र रामचंद्र के शासन में देवगिरि पर हमला हुआ था। हमलावर यहां से बड़ी मात्रा में धन लूटकर ले गया और उसने राजा को बंदी बना लिया था। कुछ समय बाद उसे छोड़ दिया था।
शंकरदेव ने 1312 ई. में सिंहासन पर बैठने के बाद हमलावरों से शत्रुता बढ़ा ली थी, जिन्होंने शंकरदेव को हराकर देवगिरि पर अधिकार कर लिया।

देवगिरि का दुर्ग आज भी दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है। खास तौर पर यहां के क्षत्रिय समाज के लोग दुर्ग में स्थापित देवी की प्राचीन मूर्ति की पूजा बड़े उत्साह से करते हैं। इस प्रकार आज भी देवगिरि यानी दौलताबाद का किला भारत के गौरव को बढ़ाता है।