हमारे देश के लिए राम मात्र एक शब्द नहीं है, वे भारतवर्ष की आत्मा हैं, हमारे ईश्वर हैं, हमारे सब कुछ हैं। संभवत यही कारण है कि अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण में देश के विभिन्न तीर्थों की उपस्थिति भी आवश्यक है। तीर्थों की उपस्थिति वहां के जल, पवित्र माटी या वहां की किसी भी वस्तु के रूप में हो सकती है।
बात जब जन-जन की आस्था के केंद्र श्री राम मंदिर की हो तो फिर वहां सभी तीर्थों की पवित्रता का संयोग स्वाभाविक ही है। 5 अगस्त को जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे तो उसके लिए विशेष तौर पर हरिद्वार से लाए गए पवित्र सलिला गंगा का जल और रेत का भी उपयोग होगा। हरिद्वार से साधु- संतों के साथ गंगाजल का कलश एवं अन्य पात्रों में गंगा की रेत भी भेजी जाएगी। अयोध्या एक महातीर्थ है लेकिन अन्य तीर्थों के जल और वहां की मिट्टी की मौजूदगी से इस तीर्थ स्थल की गरिमा और महिमा में कई गुना वृद्धि हो जाती है।
इसके साथ ही हरिद्वार जिले के ही कोट विकासखंड स्थित सीता माता मंदिर से भी माटी लेकर आस्थावान लोग अयोध्या पहुंचेंगे। इसके अलावा चारों धामों से मिट्टी एवं जल भी साधु- संत एवं श्रद्धालु संग्रहित करेंगे एवं अयोध्या पहुंचाएंगे, ताकि इन पवित्र जल, मृदा एवं रेत का भूमि पूजन में उपयोग हो सके।
इन पवित्र वस्तुओं को लेकर श्रद्धालु एवं साधु -संत 3 अगस्त को चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी और उत्तरकाशी से रवाना होकर अयोध्या पहुंचेंगे। वास्तव में देखा जाए तो बात सिर्फ मिट्टी कि नहीं, हमारी आस्था की है। सनातन संस्कृति में नदी और पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है। गंगा, नर्मदा, सरयू, सरस्वती, ताप्ती, कृष्णा, कावेरी आदि पवित्र नदियों को मोक्षदायिनी कहा जाता है। वहां के जल की उपस्थिति किसी भी स्थान को तीर्थ स्वरूप बना देती है, ऐसे में श्री राम जन्मभूमि में भूमि पूजन के अवसर पर इनका प्रयोग निश्चित ही अत्यंत फलदायी होगा।