सनातन धर्म और उसकी महिमा बहुत महान है. हिंदू धर्म में पूजा पाठ का विशेष महत्व है. विधी विधान से किए गए पूज पाठ का उचित फल प्राप्त होता है. हमारे धर्म में भगवान की मूर्तियों को स्नान कराना, वस्त्र-आभूषण अर्पित करना, श्रृंगार करना, हार-फूल पहनाना, धूप-दीप जलाकर आरती करना, भोग लगाना, परिक्रमा करना. उज्जैन के ज्योतिषाचार्य ने परिक्रमा के संबंध में कुछ नियम बताए हैं. सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग है. इस विष्य पर जानकारी निचे दी गई है.
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि जो व्यक्ति परिक्रमा करते हैं उनमें हमेशा सकारात्मक सोच रहती है. मन हमेशा संतुलित रहता है. ऐसे व्यक्ति आपदा आने पर घबराते नहीं है वे अपनी सूझ बूझ के साथ परिस्थिती को संभाल लेते हैं.
परिक्रमा की संख्या इस प्रकार है
1. सूर्य देव की सात
2. श्रीगणेश की तीन,
3. श्री विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार
4. हनुमानजी की तीन
5. देवी दुर्गा सहित सभी देवियों की एक,
6. शिवलिंग की आधी परिक्रमा करनी चाहिए
यहां पर शिवलिंग से जुड़ी बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहेंगे कि शिवलिंग की जलधारी को लांघना अशुभ होता है. जलधारी तक पंहुचकर परिक्रमा को पूरा मान लिया जाता है. इस वजह से शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करना चाहिए.
कैसे करें परिक्रमा
परिक्रमा की शुरुआत दाएं हाथ से बाएं हाथ की ओर होना चाहिए. मतलब जैसे घंड़ी के काटें सीधे हाथ से उल्टे हाथ की ओर चलते हैं वैसे ही परिक्रमा शुरू करना चाहिए. मंदिर में लगातार पूजा होती है. और यही वजह है कि वहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव 24 घंटे रहता है. आप जब किसी मंदिर में जाते है तो पूजा-अर्चना करते हैं तब मन को बहुत शांती मिलती है.. और फिर कुछ ही मिनटों में हमारे मन से नकारात्मक ऊर्जा छू मंतर हो जाती है.
परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है…
दाहिने का अर्थ दक्षिण होता है, यही कारण है कि परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है. आपके मन के सवाल आ रहा होगा कि घर के अंदर परिक्रमा कैसे करें!. इसका उत्तर बहुत ही सरल सा है आप जिस स्थान पर खड़े हैं उस ही जगह पर गोल घूमकर भी परिक्रमा की जा सकती है.