एक पवित्र नदी, जो प्रकृति में हुए परिवर्तन के कारण हो गई विलुप्त

भारत वर्ष के कण कण में भगवान बसते हैं. यहं धर्म है, आस्था है, संस्कार हैं, और हमारी पवित्र विरासत है, जिनमें पहाड़, नदियाँ, देवालय, झरने और पवित्र नगर. उत्तर प्रदेश का प्रयागराज शहर हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हैं। मान्यता है कि सृष्टि की रचना करते समय भगवान ब्रह्माजी ने सबसे पहले प्रयागराज में ही यज्ञ का आयोजन किया जाता है। प्रयागराज में हर 12 साल में एक बार दुनिया के सबसे बड़े कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर आयोजित किया जाता है। यहां पर गंगा, यमुना, सरस्वती नदियों का संगम होता है। हालांकि गंगा और यमुना नदी का संगम तो आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन सरस्वती नदी कहीं नजर नहीं आती हैं। ऐसे में कुछ लोगों के मन में सरस्वती नदी के अस्तित्व को लेकर सवाल उठता है। हालांकि धर्म और विज्ञान दोनों ही ऐसे लोगों के मत को सिरे से खारिज करते हैं।

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दरअसल हिंदू धर्म से जुड़े धार्मिक ग्रंथों और वैज्ञानिक प्रमाण की बात करें तो दोनों ही यह इशारा करते हैं कि किसी समय यहां सरस्वती नदी बहती थी। वैज्ञानिक आधार है कि सरस्वती नदी प्राचीन समय में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में बहती थी। भारत और नासा के संयुक्त अभियान में भी सामने आया है कि लगभग 5500 साल धरती पर सरस्वती नदी का अस्तित्व था। यह नदी लगभग आठ किलोमीटर चौड़ी और 1600 किलोमीटर लंबी थी। सरस्वती नदी आखिर में जाकर अरब सागर में विलीन हो जाती थी। हालांकि करीब 4 हजार वर्ष पहले प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी विलुप्त हो गई।

 

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वहीँ अगर धार्मिक आस्था की बात करें तो ऋग्वेद और अन्य पौराणिक शास्त्रों में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले को सरस्वती नदी का उद्गम स्थल माना गया है। मान्यता है कि इस स्थान पर ऋषि मार्कंडेय ने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सरस्वती नदी यहां प्रकट हुई थी। ऋग्वेद में सरस्वती नदी का कई बार उल्लेख किया गया गया है। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गयी है। वैदिक काल में भी सरस्वती नदी का बहुत महत्व रहा है। मान्यता है कि ऋषियों ने सरस्वती नदी का जल पीने के बाद ही पुराण, शास्त्र और ग्रंथों की रचना की थी। वहीं महाभारत काल में सरस्वती नदी को प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती जैसे नामों से जाना जाता था। हालांकि महाभारत में ही सरस्वती नदी के मरुस्थल में ‘विनाशन’ नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन भी किया गया है।

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