धरती पर वो सबसे बड़ी रणभूमि थी. वो कुरुक्षेत्र का मैदान था. जहाँ पूरी दुनिया के योद्धा एक साथ इकठ्टे हुए थे. महाभारत से बड़ा युद्ध इस धरती पर आज तक नहीं हुआ. ये युद्ध धर्म और अधर्म के बीच के था. पांडवों और कौरवों के बीच साम्राज्य और सत्ता के लिए हुए इस युद्ध में उस समय भारत के सभी जनपदों ने भाग लिया था. इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धाओं का अंत हो गया था. केवल इतना ही इस युद्ध में भारतवर्ष के राजाओं अलावा बहुत सारे अन्य देशों के क्षत्रिय राजाओं ने भाग लिया था. कहते हैं इस युद्ध के बाद दुनिया में वीर क्षत्रिय योद्धाओं की लम्बे समय के लिए कमी हो गई थी.
जब यह निश्चित हो गया कि युद्ध तो होगा ही, तो दोनों पक्षों ने युद्ध के लिए तैयारियाँ शुरू कर दी थीं. दुर्योधन पिछले 13 वर्षों से युद्ध की तैयारी कर रहा था. दुर्योधन कर्ण को अपनी सेना का सेनापति बनाना चाहता था परन्तु शकुनि के समझाने पर दुर्योधन ने पितामह भीष्म को अपनी सेना का सेनापति बनाया, जिसके कारण भारत और विश्व के कई जनपद दुर्योधन के पक्ष मे हो गये. पाण्डवों की तरफ केवल वही जनपद थे जो धर्म और श्रीकृष्ण के पक्ष मे थे. महाभारत के अनुसार महाभारत काल में कुरुराज्य विश्व का सबसे बड़ा और शक्तिशाली जनपद था. विश्व के सभी जनपद कुरुराज्य से कभी युद्ध करने की भूल नहीं करते थे एवं सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखते थे. पर जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ हुआ. उस युद्ध में कई बड़े बड़े वीर योद्धा इस धरती से चले गए. जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पायी. पर अंत में विजय धर्म की हुई. लेकिन आज भी उस युद्ध को धरती पर सबसे बड़ा संग्राम माना जाता है.