बुराई पर अच्छाई की जीत होती है तय, श्रीराम का नाम लेने वालों की होती है विजय

आज विजयादशमी है. अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष के दिन यह त्यौहार मनाया जाता है. जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. दशहरा का ये त्यौहार भगवान श्रीराम की रावण पर जीत के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है. और आज के दिन देश भर में कई स्थानों पर रावण के बड़े बड़े पुतलों को जलाया जाता है. इंसान का कर्म ही उसे श्रीराम के आदर्श वाला या रावण बनता है. और मनुष्य अपने कर्म से ही अपना भाग्य बनाता है. विपरीत परिस्थितियों में भी रास्ते ढूंढ लेता है. इसलिए इतना निश्चित है. जो अच्छे कर्म करते हैं. और सदैव मेहनत, ईमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलते हैं, उन्हें समाज में यश ही मिलता है. भले ही देर हो जाये. भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे. और रावण एक विद्वान ब्राह्मण होने के बाद भी अधर्मी था. उसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था. इसलिए वो श्रीराम की धर्मपत्नी माता सीता को छल से अपने साथ लंका में ले गया. और श्रीराम ने नीतिगत तरीके से उसके विरुद्ध पूरी तैयारी की और युद्ध लड़ा. और रावण का अंत करके पूरे सम्मान के साथ माता सीता को वापस लेकर आये.

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हर इंसान के मन में रावण होता है. जो कभी कभी उसके ऊपर हावी हो जाता है. ये रावण, काम, क्रोध, मद, लोभ, और अहंकार के रूप में इंसान के भीतर रहता है. पर मनुष्य के कर्म यदि अच्छे हैं, और उसके मन पर उसका काबू है, तो ये कभी बाहर नहीं आ पाता, और जिनकी इच्छा शक्ति कमज़ोर होती है, उनके ऊपर ये कभी भी हावी हो सकता है. इंसान का असली इम्तिहान मुश्किल समय में होता है. इसलिए कभी जीवन में समस्याओं से नहीं घबराना चाहिए. क्योंकि हर समस्या समाधान के लिए ही होती है. और अगर समाधान नहीं होता, तो हम समस्या की पहचान ही कैसे कर पाते. लेकिन जीवन की सभी चुनौतियों का सामना करना श्रीराम के आदर्श हैं. सहजता, सरलता, सामर्थ्य, धैर्य, क्षमाशील, कुशल नेतृत्व, वीर योद्धा, अनुशासन और मर्यादा ऐसे अनगिनत गुणों का प्रतिरूप हैं श्रीराम. उनके दिखाए हुए रास्ते पर चलकर मनुष्य बहुत आसानी से अपने जीवन की चुनौतियों से पार जा सकता है. और अपने जीवन में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है.

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भगवान श्रीराम मानवजाति का कल्याण करने के लिए धरती पर मानव रूप में आये थे. पर उन्हें भी अपने भाग्य में लिखी हुई निर्धारित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. ईश्वर होकर भी सामान्य मनुष्य से ज्यादा कष्ट उन्होंने उठाये. लेकिन फिर भी अपने आदर्शों पर कायम रहे. उन्हें भी यश और अपयश दोनों का का स्वरूप देखने को मिला. पर मर्यादा की राह पर फिर भी सदैव चलते रहे. और उनके द्वारा स्थापित किये गए आदर्शों पर ही आज पूरी सभ्यता की आधारशिला है.