कान छिदवाने से बढ़ती है सुनने की क्षमता और याददाश्त भी होती है तेज

आपने देखा होगा कि जब बच्चा छ(6) महीने का होता है तो कुछ लोग बच्चे का कान छिदवाते हैं. इस परंपरा को स्त्री और पुरुष दोनों ही निभा सकते हैं. कर्णवेध संस्कार, बच्चे के छ (6) से सोलह (16) महिने के बीच किया जाता है. ये 16 संस्कारों में नौवां संस्कार है.

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इस संसकार के पीछे की मान्यता है कि सूरज की किरणें कानों के छेद से शरीर में जाकर बच्चों को तेजस्वी बनाती है. इससे बच्चे को कोई बीमारी नहीं होती. वहीं बात करें एक्युपंक्चर विज्ञान की तो कानों के जिस हिस्से में छेद किए जाते हैं वहां एक्युपंक्चर पॉइंट होता है. कहते हैं इससे सेहत अच्छी बनी रहती है. आयुर्वेद के अनुसार कान छिदवाने से रिप्रोडक्टिव ऑर्गन स्वस्थ रहते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं इम्यूनिटी सिस्टम भी मजबूत बनता है.

घबराहट कम , मानसिक बीमारियों से बचाव

विज्ञान का कहना है कि कान छिदवाने वाली जगह पर दो एक्युपंक्चर प्वाइंट्स होते हैं. वे इस प्रकार हैं…
1. मास्टर सेंसोरियल और
2. दूसरा मास्टर सेरेब्रल जो कि सुनने की क्षमता को बढ़ाते हैं.

एक्यूपंक्चर के मुताबिक जब कान छिदवाते हैं तो इसका दबाव ओसीडी पर पड़ता है, इस वजह से घबराहट कम होती है. इससे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ीं बीमारियों को भी दूर किया जा सकता है.

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आंखों की रोशनी बेहतर होती है
आर्युवेद के अनुसार कान छिदवाने से आंखों की रोशनी बेहतर होती है. दरअसल, कान के निचले हिस्से में एक प्वाइंट होता है. शायद आपको इस बात की जानकारी होगी कि कान के निचले हिस्से से आंखों की नसें गुजरती है. कान छिदवाने से आंखों की रोशनी तेज होती है साथ ही दबाव पड़ने से तनाव कम होता है. यही नहीं अन्य परेशानियों से भी बचाव होता है.

पाचन क्रिया होती है दुरुस्त

कान के निचले हिस्से पर दबाव पड़ने से केवल तनाव ही नहीं बल्कि भूख न लगने की समस्या भी दूर हो जाती है. साथ ही पाचन क्रिया भी दुरुस्त होती है. और मोटापे जैसी समस्या से छुटकारा मिलता है. और ऐसी भी मान्यता है कि कान छिदवाने से लकवा जैसी बीमारी को भी दूर किया जा सकता है.