किसी का हक मारने से सुख नहीं मिलता है सिर्फ पछतावा

भगवान गौतम बुद्ध ने अपनी जातक कथाओं के माध्यम से हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। उनकी कथाओं से हमें संदेश मिलता है कि हमारे सामने चाहे जैसी परिस्थिति हो, हमें सदैव मुस्कुराते हुए उसका सामना करना चाहिए। साथ ही हमें किसी को बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए। इससे हमें बाद में पछताना पड़ता है।

ऐसी ही एक जातक कथा है कि एक बार किसी विद्वान परिवार में आठ भाई बहन रहते थे। माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् सभी भाई-बहनों ने मिलकर सन्यास ग्रहण करने का निश्चय किया और वन में चले गए। उनकी सेवा करने के लिए एक नौकर और नौकरानी भी उनके साथ-साथ वन में आ गए। वन में आने के बाद सभी ने मिलकर अपने लिए एक-एक कुटिया का निर्माण किया और उसमें रहने लगे। भाई-बहनों ने मिलकर व्रत लिया कि वह दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करेंगे और प्रत्येक पांचवें दिन बड़े भाई का उपदेश सुनने के लिए इकट्ठा होंगे।

इस तरह सभी भाई-बहन कठिन तपस्या में लग गए। उनके साथ आए नौकर-नौकरानी उनकी सेवा करते थे। अपने व्रत के अनुसार भाई-बहन प्रत्येक पांचवें दिन ही इकट्ठा हो सकते थे, ऐसे में नौकरानी रोजाना जलाशय से कमल की ककड़ी लाकर उसे आठ भागो में बांटकर रख देती थी। इसके बाद एक-एक कर सभी भाई-बहन अपनी-अपनी कुटिया से बाहर आते और अपना-अपना हिस्सा उठाकर वापस कुटिया में चले जाते।

एक दिन एक शरारती व्यक्ति ने भाई-बहनों की कठिन तपस्या की परीक्षा लेने का निश्चय किया। परीक्षा लेने के लिए शरारती व्यक्ति ने चुपके से जाकर नौकरानी द्वारा आठ भागो में बांटकर रखी कमल की ककड़ी का एक हिस्सा चुरा लिया। सबसे पहले जब बड़ा भाई अपना हिस्सा लेने के लिए कुटिया से बाहर आया तो उसने देखा कि भोजन की थाली में से उसका हिस्सा गायब है। ऐसे में वह बिना कुछ लिए ही वापस अपनी कुटिया में चला गया। इसके बाद बचे हुए भाई-बहन आए और अपना-अपना हिस्सा लेकर चले गए।

शरारती व्यक्ति लगातार पांच दिनों तक भोजन की थाली में से कमल की ककड़ी का एक हिस्सा चुराता रहा और हर बार बड़ा भाई बिना कुछ लिए वापस अपनी कुटिया में चला जाता था। पांचवें दिन जब सभी भाई-बहन एक जगह इकट्ठा हुए तो देखा कि बड़ा भाई दुर्बल हो चुका है।

उसके मुख से आवाज ही नहीं निकल रही है। यह देख सभी भाई-बहन दुखी हो गए। हालांकि जब उन्हें कमल की ककड़ी के एक हिस्से की चोरी के बारे में पता चला तो किसी ने भी चोर के लिए बुरे शब्द नहीं कहें। यह देख शरारती व्यक्ति अपने कर्म पर बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने सभी भाई-बहनों से माफ़ी मांगी और उनकी कठिन साधना की प्रशंसा की।