हरीतकी एक आयुर्वेदिक औषधि है। आयुर्वेद में इसे काफी महत्व दिया गया है। यह औषधि त्रिफला के तीन फलों में एक है। इसे हरड़ के नाम से भी जाना जाता है। हरीतकी का उपयोग हमारे शरीर और त्वचा को स्वस्थ बनाने में किया जाता है। साथ ही कई सारी बीमारियों से लड़ने में भी इसका उपयोग होता है। इसकी जड़, छाल और फल सभी हमारे शरीर के लिए उपयोगी है। हरीतकी का वानस्पतिक नाम टर्मिनेलिया चेब्युला है।
त्वचा से संबंधित एलर्जी होने पर हरीतकी का उपयोग किया जाता है। इसके फल से बना काढ़ा पीने और एलर्जी वाले स्थान पर लगाने से एलर्जी से छुटकारा मिलता है। गुड़ और हरीतकी का सेवन करने से शरीर की सूजन से राहत मिलती है। साथ ही मलेरिया से ग्रसित व्यक्ति अगर शहद के साथ हरीतकी का चूर्ण ले तो उसे फायदा होता है। रातभर हरीतकी को पानी में भिगोकर सुबह उस पानी से आंखे धोने से आंखों को आराम मिलता है। साथ ही आंखों से संबंधित कई बीमारियां भी नहीं होती है। हरीतकी के चूर्ण को छाछ में मिलाकर उससे गरारे करने से मसूड़ों की सूजन से राहत मिलती है।
कब्ज, अपच या पेट संबंधी अन्य बीमारी होने पर हरीतकी का शहद, लौंग और दालचीनी के साथ सेवन करने से आराम मिलता है। हरीतकी हमारी पाचन शक्ति को बढ़ाता है, जिससे पेट संबंधी बीमारी नहीं होती है। अगर भूख ना लगने की समस्या से जूझ रहा व्यक्ति हरीतकी का गुड़ और सेंधा नमक के साथ सेवन करता है तो उसकी भूख बढ़ती है। हरीतकी के काढ़े से घाव धोने पर आराम मिलता है और घाव भी जल्दी भरता है। इसके अलावा हरीतकी को पानी में घिसकर उस लेप को छालों पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं। हरीतकी का चूर्ण बनाकर उससे दांत साफ़ करने से दांत मजबूर बनते हैं और दांत से जुड़े रोग भी दूर हो जाते हैं। मौसमी बुखार को दूर करने के लिए भी हरीतकी का उपयोग किया जाता है। तिल तेल, घी और शहद के साथ हरीतकी का उपयोग करने से बुखार से राहत मिलती है।
हरीतकी के इन फायदों के बावजूद भी थके हुए कमजोर व्यक्ति को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही भूख, प्यास तथा गर्मी से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी यह हानिकारक है। इसलिए हरीतकी का सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह जरूर लेना चाहिए।