लंकापति रावण बहुत बड़ा विद्वान और शक्तिशाली था, पर उसका पुत्र मेघनाथ परम शक्तिशाली था. ऐसा कहा जाता है कि मेघनाथ ही आज तक केवल एक ऐसा व्यक्ति हुआ है जो तीनों देवों से प्राप्त शक्ति अर्जित कर पाया है. त्रिदेव कहे जाने वाले ब्रह्मा–विष्णु–महेश तीनों के द्वारा प्रदान की गई तीन प्रकार की अलग–अलग शक्तियां इंद्रजीत के पास मौजूद थे इसी वजह से वह ब्रह्मांड का सबसे महान योद्धा कहलाया गया. इंद्रजीत ने अपनी युक्त शास्त्र शिक्षा गुरु शुक्र से प्राप्त की थी और उन्हीं से उन्हें तीनों देवताओं के शस्त्र प्राप्त हुए थे जिनके नाम ब्रह्मास्त्र, वेष्णवस्त्र और पशुपतिस्त्र. इन सबके अलावा उन्होंने कई अलग–अलग प्रकार की जादुई और सम्मोहन शक्तियों को प्राप्त किया था, जिसकी वजह से ही युद्ध क्षेत्र में उन्होंने प्रभु राम व उनके अनुज लक्ष्मण दोनों को ही एक साथ नागपाश के प्रहार से मूर्छित कर दिया था.
इंद्रजीत के बल का व्याख्यान जितना किया जाए उतना कम है, क्योंकि वह एक अकेला ही ऐसा योद्धा था जिसने एक ही दिन के युद्ध में भगवान श्रीराम की वानर सेना में तबाही मचा दी थी. लंका में वह अकेला एक ऐसा योद्धा था जो पूरी वानर सेना को अपनी एक ही गर्जना से पूरी तरह बिखेर कर रख सकता था. परंतु उसमें आए शक्ति के घमंड की वजह से वह अपनी बुद्धि का सही उपयोग ना कर सका इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया. मेघनाथ के जीवन से हमें यही शिक्षा मिलती है कि इंसान भले ही कितना शक्तिशाली हो जाए परंतु घमंड की वजह से अपनी बुद्धिमता को नहीं गंवाना चाहिए. यही हश्र मेघनाथ के पिता रावण का हुआ, क्योंकि उसे भी अपनी शक्ति पर बहुत ज्यादा अहंकार आ गया था. या फिर इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं, कि शायद यही प्रभु की लीला थी, और यही होना था.