कल के एक आर्टिकल में हमने बताया था (तो इसलिए कार्तिक मास की हुई शुरूआत) अन्न दान महादान होता है. कहते हैं कि अन्नदान करने वाले व्यक्ति को हजारों गाय दान करने जितना फल मिलता है. आज के आर्टिकल में बस दान की बात पर थोड़ा और जानकारी देना चाहेंगे कि दान ज़रूरतमंदों को ही करना चाहिए. अर्थात्, ऐसे व्यक्ति को नहीं जिसका पेट भरा हो.
15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत कबीर ने अपने कई प्रसंगों में जीवन में सुखी रहने और सफलता के सूत्र बताए हैं. कहते हैं कि अगर इन सूत्रों को अपने जीवन में उतार लिया जाए तो कोई भी व्यक्ति कभी निराश नहीं होगा और समस्याएं खुद ब खुद दूर हो जाएंगी.
कहते हैं कि कबीर जी की कविताएं सुनने के लिए लोग दूर दूर से आया करते थे. कई तो उनके शिष्य बने, तो कईयो ने उनका अनुसरण करना शुरु कर दिया. उनके प्रवचन सुनने के लिए हर वर्ग का व्यक्ति आता था.
धनी सेठ की मुलाकात हुई कबीर जी से
शायद आप जानते होंगे कि संत कबीर कपड़े बुनने का काम करते थे. इसी से जुड़ी एक कहानी बताते हैं. एक दिन धनी सेठ उनसे मिलने आए और वे कबीर जी से कहने लगे कि आप इतने बड़े कवि व विद्वान होकर कपड़े बुनने का कार्य करते हैं यह आपके लिए सही नहीं है. आप इसे छोड़ कर आराम करें, और मैं आपकी सारी इच्छाएं पूरी करूंगा.
यह सुनकर कबीर जी ने धनी सेठ से कहा कि “आपकी यह बात सुनकर मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. आगे वे सेठ से कहते हैं कि मैं अपने कपड़े बुनने वाले काम से अपनी जीविका चलाता हूं. ज़रूरतमंदों को लिए कपड़े बुनता हूं. मुझे धन की कोई कमी नहीं है. मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूं”.
कबीर जी ने दी सीख
कबीर जी ने धनवान सेठ से कहा कि अगर आप धनी है, जीवन में सुख-शांति है और आप दान करने के इच्छुक हैं तो आपको उन लोगों कि मदद करनी चाहिए जिन्हे दो समय का भोजन भी बहुत दिक्कतों के साथ नसीब होता है. पहनने के लिए कपड़े, ठंड के समय कंबल जिन के पास नहीं है उन्हें दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.
ये बात सुनकर उस सेठ को अपनी गलती का एहसास हुआ और तब से वे जरूरतमंदों की सेवा करने लगे.