इसलिए कहा जाता है भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम

भगवान श्रीराम इस धरती पर त्याग, और मर्यादा के प्रतीक हैं. अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने सभी मर्यादाओं का पालन किया जो आवश्यक थीं. जैसे उन्होंने अपने पिता को दिए वचन का मान रखा. गुरु के आदेश पर विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया. प्रभु राम को भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में माना जाता है. जिन्होंने त्रेता युग में रावण का संहार करने के लिए धरती पर अवतार लिया. उन्होंने माता कैकेयी की 14 वर्ष वनवास की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करते हुए पिता के दिए वचन को निभाया. उन्होंने अपने माता, पिता या गुरु की किसी भी इच्छा का अनादर नहीं किया. और उनसे कभी पलटकर कोई सवाल नहीं किया. हम सब भगवान श्रीराम को उनके विशिष्ट व्यक्तित्व और आदर्शवादी गुणों के कारण हमेशा से पूजते आये हैं, और सम्पूर्ण मानवजाति उन्हें सदैव पूजती रहेगी.

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प्रभु राम के चरित्र में किसी तरह की जड़ता, पक्षपात अथवा असहिष्णुता नहीं है. वो अत्यंत विनम्र हैं. मुसीबतों को अवसर में बदलने का विशेष गुण उनके व्यक्तिव का हिस्सा रहा. संघर्ष में उनकी इच्छाशक्ति दिखाई देती है. वियोग में उनका धैर्य दिखाई देता है. जब वनवास के दौरान एक मुनि उनकी इस अवस्था के लिए कैकेयी को दोष देते हैं तो प्रभु राम ने उनसे कहा मुनिवर माता की कृपा के कारण ही तो मुझे आपके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. यही हैं भगवान राम के अपने भक्तों के लिए महान विचार और आदर्श.

भगवान राम के व्यक्तिव के थोड़े से गुण भी मनुष्य अपना ले तो उसके सभी कार्य आसान हो जायेंगे. प्रभु राम जीवन में हारना कभी स्वीकार नहीं करते, संघर्ष से हर लड़ाई को अपनी विजय में बदल देते हैं. बुराई पर अच्छाई की वजय ज़रूर होती है. थोड़ी देर लगती है. थोड़ा संयम भी रखना होता है. पर अंत बहुत अच्छा होता है. और सपष्ट होता है.