हनुमान जी से सीखें- सेवा भाव, और धैर्य के साथ बुद्धि का सही उपयोग करना

रामायण का ज्ञान हमारी जीवन शैली में घुला हुआ है. मनुष्य के जीवन में आने वाली हर समस्या का समाधान रामायण में मिलता है. इसके हर पात्र और घटनाक्रम में इतना कुछ है कि साधारण मनुष्य यदि उन आदर्शों को थोड़ा भी अनुकरण करे तो संसार की तमाम मुश्किलें भी उसका मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकती. ठीक उसी तरह जैसे हनुमानजी ने प्रभु राम की सेवा में स्वयं को समर्पित कर दिया.

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हनुमान जी न केवल श्रीराम के दूत बनकर अपने आवेग से अथाह सागर को पार करके माता सीता के पास पहुंच गए, बल्कि रावण की सोने की लंका जलाकर उसका घमंड चूर करके वापस प्रभु राम के पास पहुंच गए. रामायण से बहुत कुछ सीखा जा सकता है जैसे हनुमान जी हमें सिखाते हैं, कि सेवा भाव, धैर्य और बुद्धि को सही समय पर कैसे उपयोग में लाएं. इससे बहुत हद तक हमारी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं.

जब तक आपका काम पूरा न हो, विश्राम नहीं करें-

सुंदरकांड के अनुसार हनुमानजी जब सीता जी की खोज के लिए लंका जाते हैं तब मैनाक पर्वत ने उन्हें विश्राम करने के लिए कहा था, लेकिन हनुमान जी ने उनसे कहा, कि मैं प्रभु श्रीराम का काम पूरा करने के बाद ही विश्राम करूंगा. अगर ऐसे ही हम अपने कार्य के प्रति दृढ़ संकल्प कर लें तो निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी.

साहस के साथ दूर हो सकती हैं बाधाएं-

जिस तरह से हनुमान ने रावण की लंका को आग के हवाले किया, ये हनुमानजी के साहस को दिखाता. और रावण के विरुद्ध युद्ध में हनुमानजी हमेशा श्रीराम के साथ खड़े रहे. और मेघनाद के बाण से जब लक्ष्मण जी घायल हुए थे तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आए थे.

मुश्किल समय में धैर्य और बुद्धि का उपयोग करें-

हनुमान जी ने धैर्य रखते हुए सीता माता की खोज की. यहां पर गौर करने वाली बात ये है, कि बिना सीता जी को देखे हनुमानजी ने बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए केवल गुणों के आधार पर अशोक वाटिका में जाकर सीता जी को ढूंढ लिया.