इन दिनों पूरी दुनिया में कोरोना ने अपना कहर बरपाया हुआ है। लेकिन भारत में इसका कुछ ज्यादा ही प्रभाव है। जल्द से जल्द इस बीमारी पर काबू पाना बहुत आवश्यक है। हालांकि बीमारी होने पर उसका इलाज करवाना ही एकमात्र उपाय है, पर हम अपनी जीवन शैली में कुछ ज़रूरी और अच्छे बदलाव करके इसे अपने पास आने रोक भी सकते हैं।
हम भारतीयों की खान पान की शैली सदैव से बहुत अच्छी रही है। ज़्यादातर सात्विक भोजन करने वाले लोग इस देश की पहचान रहे हैं। प्राक्रृतिक चीज़ों का ज्यादा से ज्यादा सेवन हमें कई तरह की गंभीर बीमारियों से बचाकर रखता था। पर पिछले कुछ वर्षों पर भारत की खान पान की शैली पर यूरोपीय देशों की नक़ल का ऐसा असर हुआ कि, हम अपनी जीवनशैली को एक अलग ही दिशा में लेकर चले गए।
जीवन के मायने समझ कर जीना ही समझदारी है। लेकिन हम खुद से ज्यादा दूसरों को देखते हैं और जैसा वो कर रहे हैं हम वही करना चाहते हैं, बस वहीं से हमारे मूल्यों का पतन होने लगता है।
कुछ ऐसा ही हमारे देश में भी हो रहा है। लोग पश्चिम के देशों की नकल करने में अपनी शान समझते हैं लेकिन वे यह नहीं देखते कि इससे हमारी भारतीय संस्कृति को कितना नुकसान पहुंच रहा है।
वास्तव में यूरोप में ताजा भोजन उपलब्ध होना मुश्किल होता है। इस कारण वहां के लोगों के लिए बासे आटे- मैदे से बने पिज्जा, बर्गर और नूडल्स खाना मजबूरी है, लेकिन हमारे भारत में यात्रा में भी ताजा और गरमागरम भोजन आसानी से मिल जाता है। इसके बावजूद यूरोप की नकल के चक्कर में हम अपने देश के ताजे और स्वादिष्ट भोजन को छोड़ बीमार कर देने वाले पिज्जा -बर्गर को खाने के लिए होड़ लगाने लग जाते हैं और इन सेहत खराब करने वाले खाने के लिए बड़ी राशि भी खर्च कर देते हैं।
यह भी देखें कि ताजे भोजन की कमी के कारण रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल करना, यूरोप की मजबूरी है। भारत में तो रोज ताजी सब्जी बाजार में मिल जाती है। इसके बावजूद हम यूरोप की जीवनशैली की नकल में हफ्तेभर की सब्जी बेवजह अपने फ्रिज में ठूंस देते हैं और बेकार हो जाने के बाद भी उसे खाते हैं। यूरोप में लस्सी, दूध, जूस जैसी चीजें भी कम ही मिलती हैं। इस कारण उन्हें कोल्ड ड्रिंक पीना पड़ता है। उनकी तुलना में हमारे देश में कम से कम 50 तरह के पेय पदार्थ मौजूद हैं। इसके बावजूद भारत के लोग अनावश्यक रूप से देखादेखी में कोल्ड ड्रिंक पीकर अपना गला और सेहत खराब कर रहे हैं। कई लोग तो यूरोप के इतने ज्यादा अंधभक्त हैं कि भोजन करते हुए भी कोल्ड ड्रिंक की चुस्कियां तक लेते रहते हैं।
आश्चर्य तो तब होता है जब देश का पढ़ा-लिखा वर्ग भी बिना विचारे यूरोप की नकल करता दिखाई देता है। हमारी आने वाली पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के साथ सेहतमंद बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम आंखें मींच कर यूरोप की नकल कर रहे लोगों को रोकें, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले स्वयं में सुधार करें।