मित्र हो तो राम जैसा

राम जी ने मानव जीवन के हर रिश्ते को बहुत सम्मान दिया और बखूबी निभाया।
खून के रिश्ते- जिसमें भाई बहन परिवार आदि आते हैं

पारिवारिक रिश्ते – जिसमें सगे संबंधी और रिश्तेदार शामिल हैं

सामाजिक रिश्ते- जिसमें आस-पड़ोस के लोग और हमारे जीवन में काम आने वाले लोग शामिल हैंImageSource

व्यक्तिगत रिश्ते- जिन्हें इंसान खुद बनाता है और अपने व्यवहार से चलाता है और इस रिश्ते का सबसे बड़ा उदाहरण है —
मित्रता – दोस्ती – फ्रेंडशिप

आज हमने हमारे जीवन के हर रिश्ते को अपनी जरूरत या अपने फायदे से जोड़ रखा है, जिस रिश्ते से हमें जितना ज्यादा फायदा है हम उस रिश्ते को उतनी ही ज्यादा अहमियत देते हैं।

रामजी ने हर रिश्ता पूरी जिम्मेदारी से निभाया और मित्रता निभाने में तो राम जी ने न जाने कितने संदेश दिए हैं सारे मानव समाज को। मित्रता निभा के राम जी ने मित्रता को एक नई परिभाषा, नई ऊंचाई, नई गरिमा दी और एक आदर्श स्थापित किया ।

कहां एक चक्रवर्ती सम्राट के बेटे, अयोध्या के युवराज और कहां जंगली भीलों का राजा निषाद राज , राम जी ने निषाद को मित्र बनाया तो भाई की तरह मान सम्मान दिया और गले लगाया। रामचरितमानस के उत्तरकांड में तुलसीदासजी ने लिखा है कि निषादराज को विदा करते समय राम जी उनको गले लगाते हुए कहते हैं-
तुम मम सखा भरत सम भ्राता
सदा रहेहु पुर आवत जाता।।
अर्थात हे मेरे सखा! तुम मुझे भरत के समान प्रिय हो और हमेशा अयोध्या आते जाते रहना ।ImageSource

इसी प्रकार सुग्रीव को राम जी ने मित्र मान लिया तो उनके हर सुख दुख में उनके साथ खड़े रहे। बाली जो उस समय धरती का सबसे बलवान और वरदानी योद्धा था उससे भी सुग्रीव की रक्षा का वचन दे दिया और राज्य वापस दिलाया।

रामचरितमानस किष्किंधा कांड में राम जी सुग्रीव से कहते हैं —
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी,
तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी।
मतलब जो अपने मित्र के दुख से दुखी नहीं होते और सहायता नहीं करते उन्हें देखना भी पाप है।

इसी प्रकार भगवान श्रीराम ने विभीषण को भी मित्र माना और हमेशा पूरी निष्ठा से मित्रता निभाई जबकि विभीषण एक राक्षस कुल में पैदा हुए थे और राम जी के घोर शत्रु रावण के भाई थे ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि राम जी ने न सिर्फ उपदेश या सीख नहीं दी बल्कि अपने व्यवहार और कर्म से मित्रता निभाई । जो राम जी को जान ले और उनकी सीख मान ले वो निस्संदेह एक आदर्श मित्र बन सकता है।

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आज समाज में मित्रता के रिश्तो में राम जी के विचार, राम जी के व्यवहार और राम जी के आदर्शों की बहुत ज्यादा आवश्यकता है और इसीलिए रामायण पढ़ना और राम जी को समझना आवश्यक है ।

जय श्री राम