सड़क पर फल बेचने वाले एक गरीब को मिला पद्मश्री, किया इतना महान काम

ये भारत वर्ष है, एक ऐसा मुल्क जहाँ हर वर्ग के लोग रहते हैं. अमीर हैं तो इतने कि, पैसों का कोई हिसाब ही नहीं, और गरीब हैं तो इतने कि, सुबह खाया तो शाम को मिले इसका कुछ पता नहीं. फिर भी इस देश के लोगों में जूनून है, ज़ज्बा है, आगे बढ़ने की ललक है. और कुछ कर गुजर जाने की तमन्ना है. और जब वो ऐसा कुछ करते हैं, जिसमें देश के लिए उनका विशेष योगदान हो, तो उसके लिए देश भी उन्हें सम्मान देता है.

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ऐसा ही हुआ कर्नाटक के एक फल विक्रेता के साथ, जिनका नाम है हरेकाला हजब्बा, जिनका काम सड़कों पर फल बेचने का है. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कुछ ऐसा किया कि, भारत सरकार ने सन 2019 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया.

दक्ष‍िण कर्नाटक के गांव न्यू पाड़ापू में रहने वाले हरेकाला हजब्बा अपने इलाके में संतरा बेचने का काम करते हैं. साल 2019 में उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया गया है.

लगभग 69 साल के हरेकाला हजब्बा का बचपन काफी गरीबी में बीता, जिसकी वजह से वो स्कूल में पढाई नहीं कर सके. और उनके जीवन की यही कमी उनकी प्रेरणा बन गई. भले ही वो स्कूल में नहीं जा सके पर उन्होंने अपने जैसे कई गरीबों के बच्चों को शिक्षित बनाने की बात मन में ठान ली. लेकिन इसके पीछे भी एक कहानी है.

जानकारी के अनुसार एक बार एक विदेशी ने उनसे अंग्रेजी में फल का दाम पूछा, और उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी इसलिए उसे रेट नहीं बता सके. उस वक्त पहली बार उन्होंने खुद को असहाय महसूस किया. उसके बाद उन्होंने फैसला किया कि, वो अपने गांव में स्कूल खोलेंगे ताकि वहां किसी और गरीब बच्चे को इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़े. और हजब्बा ने इसके लिए अपनी जीवन भर की जमापूंजी लगा दी.\

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हरेकला हजब्बा के गांव नयापड़ापु में स्कूल नहीं था. उन्होंने पैसे बचाकर सबसे पहले स्कूल खोला. जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई, उन्होंने कर्ज भी लिया और बचत का इस्तेमाल कर स्कूल के लिए जमीन खरीदी. हर दिन 150 रुपये कमाने वाले इस व्यक्त‍ि के जज्बे ने ऐसा कमाल किया कि, एक छोटा सा स्कूल अब प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज के तौर पर अपग्रेड होने की तैयारी कर रहा है. इसीलिए कहते हैं कि, इंसान अगर मन में ठान ले तो कुछ भी कर सकता है. बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए.