महारानी गांधारी नहीं चाहती थीं महाभारत का संग्राम

धरती का स्वरुप बदलने वाला युद्ध महाभारत आज तक का ऐसा संग्राम है, जिसमें इतने बड़े बड़े शूरवीरों ने भाग लिया था जिसकी वजह से समूची पृथ्वी के वीर योद्धा एक मैदान में इकठ्ठे हो गए थे. केवल 2-3 स्वार्थी लोगों की महत्वाकांक्षाएं, और उनके लालच ने उन्हें अधर्मी बना दिया था. पर सबसे ज्यादा अधर्म की राह पर चलने वाले थे दुर्योधन, उसका भाई दुशासन और उनके मामा शकुनी. दुर्योधन महाभारत का वो किरदार था, जिसके आस पास पूरी कहानी रची गई, या फिर ये कह सकते हैं, महाभारत होने का मुख्य कारण ही दुर्योधन था. महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी का पुत्र दुर्योधन बहुत बलशाली था.

कहते हैं कि, जब उनके पहले पुत्र दुर्योधन का जन्म हुआ तो एक बड़ा अपशकुन हुआ था, दुर्योधन ने पैदा होते ही बोलना शुरू कर दिया था, जो अच्छा संकेत नहीं माना जाता था, उसी समय राज्य के विद्वान लोगों ने उस बालक का त्याग करने के लिए कहा था. यहाँ तक कि, कई विद्वानों के साथ विदुर ने भी ये कहा था कि, यदि कौरव वंश की रक्षा करनी है तो महाराज और महारानी अपने पुत्र दुर्योधन का त्याग कर दें, अन्यथा इस राज्य में अनिष्ट होने से कोई नहीं रोक पायेगा. किन्तु पुत्रमोह में महाराज धृतराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया.

दुर्योधन की माँ गांधारी महाभारत नहीं होने देना चाहती थीं, और जब श्रीकृष्ण ने पांडवों की तरफ से पांच गाँव मांगे, तो दुर्योधन ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया. लेकिन जब गांधारी को ये बात पता चली तो उन्होंने दुर्योधन से कहा, इस प्रस्ताव को स्वीकार कर ले. मगर स्वभाव से ही जिद्दी दुर्योधन ने अपनी माँ गांधारी के साथ भीष्म पितामह, श्रीकृष्ण, द्रोणाचार्य, और विदुर जैसे महान लोगों की बात भी नहीं मानी, क्योंकि बचपन से ही उसके स्वभाव पर उसके मामा शकुनी की गहरा असर था, और शकुनी चाहता था कि, पांडवों को उस राज्य में से एक सुई की नोंक जितनी जगह भी नहीं मिले, उसके बाद इसका जो परिणाम हुआ वो पूरे संसार के सामने आज भी बहुत बड़ा उदाहरण है.