राजस्थान अपनी अनोखी संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। हर साल बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक राजस्थान की संस्कृति को करीब से जानने के लिए और यहां के खूबसूरत पर्यटन स्थलों का आनंद लेने के लिए यहां आते हैं। सदियां बीत जाने के बाद भी राजस्थान के लोग अपनी संस्कृति को नहीं भूले हैं। खासकर मेले व उत्सवों में यह और भी निखर कर सामने आती है। ऐसा ही एक लोकप्रिय उत्सव है गणगौर मेला, जिसे राजस्थान के सबसे बड़े उत्सवों में से एक माना जाता है।
गणगौर मेला राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, नाथद्वारा सहित अन्य स्थानों पर आयोजित किया जाता है। गणगौर मेला हर साल चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को यानी होली के अगले दिन मनाया जाता है। गणगौर मेला 16 दिनों तक चलता है। गणगौर का मतलब है गण और गौर। गण यानी भगवान शिव और गौर यानी माता पार्वती। इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ गणगौर पूजा करती हैं जबकि कुवांरी लड़कियां मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए पूजा करती हैं। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं। झीलों की नगरी उदयपुर में हर साल गणगौर पर मेवाड़ उत्सव मनाया जाता है। इसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं।
समारोह के अंतिम दिन उदयपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र में एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे गणगौर मेला भी कहते हैं। इसके अलावा राजधानी जयपुर में भी प्रतिवर्ष गणगौर उत्सव की धूम होती है। यहां का मुख्य आकर्षण गणगौर उत्सव के अंतिम दिन निकाली जाने वाली सवारी है। इस दौरान भगवान शिव की प्रतिमा के साथ हाथियों, घोड़ों का जुलूस और गणगौर की सवारी निकलती है। जयपुर, उदयपुर के अलावा राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी गणगौर मेले का आयोजन किया जाता है। राजस्थान में गणगौर मेले का इतिहास कई दशकों पुराना है।
गणगौर मेला चैत्र शुक्ल तृतीया को आयोजित किए जाने के पीछे एक प्रसंग है कि एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारदमुनि चैत्र शुक्ल तृतीया को भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंचें। जब गांव की महिलाओं को भगवान शिव और माता पार्वती के आने की सूचना मिली तो वह उनके स्वागत की तैयारी में जुट गई। सबसे पहले निर्धन परिवारों की महिलाएं घर में जो भोजन मौजूद था, उसी को लेकर भगवान शिव और माता पार्वती का स्वागत करने के लिए पहुंच गई। माता पार्वती उनके प्रेम से इतना प्रसन्न हुई कि उन्होंने अपना सारा सौभाग्य आशीर्वाद निर्धन महिलाओं को दे दिया। कुछ देर बाद जब समृद्ध परिवारों की महिलाएं अच्छे पकवान बनाकर उनका स्वागत करने के लिए पहुंची तो माता पार्वती के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं था। ऐसे में माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे छिड़क कर उन्हें आशीर्वाद दिया।