भारत में किलों का इतिहास बहुत पुराना है। पुराने समय से ही राजा अपने परिवार और प्रजा की सुरक्षा के लिए किले बनवाते थे। इन किलों से आक्रामण करने वाले अन्य राजाओं और लुटेरों से सुरक्षा होती थी। इसके बावजूद राजा एक- दूसरे के किलों पर चढ़ाई करके अपने राज्य का फैलाव करते थे। इस तरह भारत में किले कई राजा-महाराजाओं के शौर्य की कहानी भी सुनाते हैं। चित्तौड़गढ़ का किला भीलवाड़ा से कुछ किमी दूर दक्षिण में है। चित्तौड़ के दुर्ग को 21 जून 2013 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था।
चित्तौड़ नगर कभी महाराणा प्रताप के राज्य मेवाड़ की राजधानी था और चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे बड़ा किला है। यह बेरच नदी के किनारे स्थित है। इसे जल किले के रूप में भी पहचाना जाता है, किले के अंदर तालाब, बावड़ी, कुएं सहित कभी 84 जल संरचनाएं थीं, जिनमें से अब केवल 22 मौजूद हैं। यह किला महान योद्धा महाराणा प्रताप और राजस्थान के महान राजपूत शासकों की बहादुरी का सबूत है। राजस्थान में सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक यह चित्तौड़गढ़ का किला जौहर मेला नामक सबसे बड़े राजपूत उत्सव की मेजबानी करता है। इस किले के सबसे मूल्यवान स्मारकों में गौमुख जलाशय, विजय स्तंभ और राणा कुंभ महल हैं।
इस किले ने इतिहास के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। यह इतिहास की कई लड़ाइयों का गवाह है। इसमें से तीन महान पराक्रम और लड़ाई की कहानी को अभी भी लोक कलाकार गा कर सुनाते हैंं। इस किले का निर्माण सातवीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजा चित्रांगद मौर्य ने करवाया था और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट लिखा मिलता है। बाद में यह चित्तौड़ कहा जाने लगा। यह मेसा के पठार पर स्थित है। सन् 738 में राजा बप्पा रावल ने मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी को हराकर यह किला अपने अधिकार में कर लिया था। फिर मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार नौवीं- दसवीं शताब्दी में इस पर परमारों का अधिकार रहा। सन् 1133 में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह ने यशोवर्मन को हराकर परमारों से मालवा छीन लिया था। इस कारण चित्तौड़गढ़ का किला भी सोलंकियों के अधिकार में आ गया। इसके बाद भी कई लड़ाइयां इस किले को लेकर लड़ी गईं।
ऐसी कई शौर्य-गाथाएं हैं, जिसके चलते चित्तौड़गढ़ का किला राजपूताने में हमेशा एक विशेष महत्व रखता है। इसे मेवाड़ के गुहिलवंशियों की पहली राजधानी के रूप में भी सम्मान प्राप्त है। इस गढ़ को लेकर एक कहावत प्रचलित है, जो इस दुर्ग के महत्व को बताती है। कहा जाता है- गढ़ों में चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया…मतलब किलों में सबसे बड़ा किला चित्तौड़गढ़ का ही है, बाकी सब किले इससे छोटे हैं। निश्चित ही यह कहावत किसी अन्य किलों का महत्व कम नहीं आंकती है, बल्कि यह इस किले की विशालता और ऐतिहासिक महत्व को बताती है। चित्तौड़गढ़ किले की कहानी राजस्थान के जन- जन में तो बसी ही हुई है लेकिन देश के कई हिस्सों में भी लोक गायन के रूप में प्रसिद्ध है।