कई बार ऐसा होता है कि दो लोग मिलते- जुलते चेहरे वाले मिल जाते हैं और उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है, लेकिन ईश्वर की अद्भुत रचना ही है कि कभी किसी की हस्त रेखाएं आपस में नहीं मिलती। अलग-अलग फिंगर प्रिंट के महत्व को विज्ञान भी मानता है और इसकी सहायता से लोगों की पहचान भी की जाती है।
यह जानने योग्य बात है कि मानव शरीर की उंगलियों में रेखाएं तब बननी शुरू हो जाती हैं, जब शिशु मां के पेट में लगभग चार महीने का होता है। ये रेखाएं एक जाल की भांति त्वचा पर बनना शुरू होती हैं। ये रेखाएं गहरी नहीं होती हैं, क्योंकि शिशु की त्वचा काफी मुलायम होती है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसकी रेखाएं, गहरी होती चली जाती हैं। मेडिकल साइंस का मानना है कि हथेली पर मुख्य रेखाएं ढाई से तीन महीने के गर्भ में ही बन जाती हैं। इसका मतलब यह है कि शिशु की हृदय रेखा, जीवन रेखा, भविष्य रेखा जैसी महत्वपूण रेखाएं गर्भ में तीसरे महीने में ही बनकर शिशु का भविष्य लिख देती हैं।
प्रकृति की विशेषता या ईश्वर की लीला ही है कि ये रेखाएं डीएनए पर आधारित होती हैं, किंतु किसी भी परिस्थिति में बच्चे की रेखाएं उसके माता- पिता या संसार के किसी भी मानव से मेल नहीं खाती हैं। रेखाएं बनाने वाले भगवान कितने विशिष्ट हैं कि अरबों- खरबों लोग, जो इस संसार में हैं और जो नहीं रहे उनकी उंगलियों में उपस्थित रेखाओं की बनावट और उनकी एक- एक डिजाइन से वे परिचित हैं। यही वजह है कि हर बार एक नए प्रकार की डिजाइन वे नए आने वाले मानव की उंगलियों पर उसकी मां के गर्भ में ही बना देते हैं। यह भी अचरजभरी बात है कि अगर जलने, चोट लगने या किसी और वजह से फिंगर प्रिंट्स मिट भी जाएं तो पुन: वैसी ही रेखाएं जिनमें एक डॉट का भी अंतर नहीं होता, प्रकट हो जाती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि ईश्वर सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप में भी है और वे विराट स्वरूप में भी मौजूद हैं।
मेडिकल साइंस के साथ आयुर्विज्ञान भी हस्तरेखाओं पर अपना रुख प्रकट करता है। इसके अनुसार हस्तरेखाओं का ज्ञान 21वें क्रोमोजोम में छिपा होता है, मतलब हमारी हस्तरेखाएं पूरी तरह आनुवांशिक आधार पर बनती हैं। क्रोमोजोम एक शिशु को गर्भधारण करते समय अपने माता-पिता द्वारा समान संख्या में हासिल होते हैं। दोनों की ओर से एक शिशु को 23-23 क्रोमोजोम मिलते हैं, तभी वह मां के गर्भ में पलता है। आयुर्विज्ञान का ऐसा भी मानना है कि हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा आपस में तब जुड़ती हैं, जब गर्भावस्था की शुरुआत में माता को किसी प्रकार का मानसिक तनाव हो। शायद इसीलिए गर्भधारण कर चुकी मां को हमेशा खुश रहने की सलाह दी जाती है।हस्तरेखा शास्त्र सामुद्रिक शास्त्र का एक अंग है। इसके सिद्धांतों के आधार पर हाथों का सूक्ष्म रूप से अध्ययन करके भविष्य बताया जाता है।
मलतब, हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार उंगलियों से किसी भी व्यक्ति का एक्स-रे किया जा सकता है। उंगलियां छोटी-बड़ी, मोटी-पतली, टेढ़ी-मेढ़ी, गांठ वाली तथा बिना गांठ वाली कई प्रकार की होती हैं। ये देखकर हस्तरेखा जानने वाले व्यक्ति का भविष्य, उसका आचरण आदि बता देते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हाथों और उंगलियों की रेखाएं अद्भुत हैं और ये ईश्वर की अनोखी रचना है।