भारत के राजसी वैभव का प्रतीक था हैदराबाद का गोलकोंडा

भारत का अपना सांस्कृतिक वैभव रहा है और इस समृद्ध विरासत के कारण ही यहां विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं। देश में कई किले और महल आज भी भारत की संपन्नता और कला की गवाही देते हैं। ऐसा ही एक किला है हैदराबाद का गोलकोंडा। करीब 400 साल पुराने इस भव्य और आकर्षक किले को देखने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं। भारत के राजसी गौरव का प्रतीक यह किला हैदराबाद शहर के पश्चिम में लगभग पांच मील दूर स्थित है। यह किला 14वीं शताब्दी में वारंगल के राजा काकतिया राजवंश द्वारा बनवाया गया था। शुरू में यह किला मिट्टी से बनाया गया था। इस किले के पास से ही मूसी नदी बहती है। यहां के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य भी लोगों को अपनी ओर खींचता है।

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गोलकोंडा किला 120 मीटर ऊंची एक ग्रेनाइट पहाड़ी पर बना है, जो बड़े और ऊंचे प्राचीर से घिरा हुआ है। ऐसे ही कुछ कारण हैं कि गोलकोंडा किले को भारत का सर्वाधिक असाधारण स्मारक माना गया है। इस ऐतिहासिक किले का नाम तेलुगु शब्द ‘गोल्ला कोंडा’ पर रखा गया हैे। इसका तेलुगु में अर्थ होता है चरवाहे की पहाड़ी या गोला कोंडा। इस किले को गोलकुंडा भी कहा जाता है। इसके साथ एक रोचक किस्सा भी जुड़ा हुआ है। एक दिन एक चरवाहे बालक को पहाड़ी पर एक मूर्ति मिली, जिसे मंगलावरम कहा जाता है। यह जानकारी तत्कालीन शासक काकतिया राजा को मिली। राजा ने उस पवित्र स्थान के चारों ओर मिट्टी का एक किला बनवा दिया। बाद के वर्षों में इस किले पर कई आक्रमण और कब्जे हुए।

गोलकोंडा किला 17वीं शताब्दी तक हीरे का एक प्रसिद्ध बाजार बन गया था। यहां से दुनिया को कुछ सर्वोत्तम हीरे मिले, जिसमें कोहिनूर भी शामिल है। इसकी वास्तुकला भी काफी आकर्षक है, जिसमें अत्यंत बारीक शिल्प नजर आता है। किले की भव्यता यहां के दरबार हॉल में भी दिखाई देती है, जिसे पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया है। यहां पहुंचने के लिए एक हजार सीढ़ियां बनी हुई हैं। किले में हरे-भरे लॉन और पानी के सुंदर फव्वारे लगे हैं। गोलकोंडा किले की भव्य वास्तुकला सैलानियों को खूब प्रभावित करती है। इसकी सुरक्षा की बात करें तो इसके प्रवेश द्वार पर बने सुंदर और मजबूत लोहे की बड़ी छड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि इस पर आक्रमण करने वाली सेनाओं को इससे टकराना आसान नहीं था। इसका प्रवेश द्वार भी अत्यंत भव्यता लिए हुए है। यहां स्थित अंगरक्षकों का बैरक और पानी के लिए लगभग 12 मीटर गहरे तीन तालाब हैं।

यहां की श्रव्य प्रणाली भी चकित कर देने वाली है। यह इस प्रकार से बनाई गई है कि हाथ से बजाई गई ताली की आवाज गेट से गूंजती हुई किले में सुनाई देती है। वास्तुकारों की अद्भुत प्लानिंग यहां हवा के लिए भी की गई है। यह इस प्रकार डिजाइन की गई है कि यहां ठंडी ताजा हवा के झोंके सदा बहते रहते हैं।

किले के बाहर पथरीली पहाड़ियों पर तारामती गान मंदिर और प्रेमनाथ नृत्य मंदिर नामक दो अलग अलग मंडप हैं, जहां प्रसिद्ध बहनें तारामती और प्रेममती रहती थीं। वे कला मंदिर नामक दो मंजिला इमारत के शीर्ष पर बने एक गोलाकार मंच पर नृत्य कला का प्रदर्शन करती थीं, जो राजा के दरबार से दिखाई देता था। कला मंदिर की भव्यता को दोबारा जीवित करने के प्रयास जारी हैं। इसके लिए यहां दक्षिण कला महोत्सव का वार्षिक आयोजन किया जाता है। किले का एक आकर्षण यहां होने वाला ध्वनि और प्रकाश का कार्यक्रम है, जिसमें गोलकोंडा के इतिहास को सजीव रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह कार्यक्रम एक दिन छोड़कर अगले दिन के अंतराल पर अंग्रेजी और तेलुगु में प्रस्तुत किया जाता है। इस तरह गोलकोंडा किला वास्तु कला का अद्भुत उदाहरण होने के साथ ही कभी नृत्य-संगीत का भी बड़ा केंद्र रहा है, जिसे अब भी सहेजने का प्रयास किया जा रहा है।