भारत एक ऐसा अद्भुत देश, जिसके कण कण में भगवान बसते हैं. इस देश को सोने की चिड़िया यूँ ही नहीं कहा जाता. चमत्कारों की धरती भी कहा जाता है इसे. यहाँ के पहाड़, मंदिर नदियाँ सबकी कुछ न कुछ अद्भुत कहानी है. गंगा नदी के उद्गम की भी बड़ी कहानी है. ऐसी ही एक अनोखी नदी है झारखण्ड की राजधानी रांची से लगभग 15 किलोमीटर दूर रत्नगर्भा क्षेत्र में. स्वर्णरेखा नाम की इस नदी को स्थानीय लोग नंदा नदी भी कहते हैं. कमाल की बात ये है कि, इस नदी में रेत के कणों के साथ सोना बहता है. आज जहाँ पूरी दुनिया में सोने की कीमत आसमान छू रहीं हैं, वहीं इस जगह पर सोना कौड़ियों के भाव पर खरीदा जाता है. आप यकीन नहीं कर पा रहे होंगे लेकिन झारखंड के रत्नगर्भा क्षेत्र में बड़े-बड़े व्यापारी आदिवासियों से मामूली कीमतों पर सोना खरीदते हैं. दरअसल आदिवासी अपने जीवन यापन के लिए रेत में से छानकर सोने के कण अलग करते हैं. और स्थानीय व्यापारियों को बेच देते हैं.
जानकारी के अनुसार यह कोई आम नदी नहीं है बल्कि इस इकलौती नदी में सोने का इतना भंडार समाया है जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. यहाँ के आदिवासी दिन रात इन कणों को एकत्रित करते हैं व स्थानीय व्यापारियों को बेचकर रोजी रोटी कमाते हैं.
यह नदी उड़ीसा, पश्चिम बंगाल से होते हुए बालेश्वर नाम की जगह पर बंगाल की खाड़ी में गिरती है. नदी की लंबाई 474 किमी. है, और स्वर्ण रेखा की सहायक नदी करकरी है.
कहां से आते हैं सोने के कण?
जानकारी के अनुसार स्वर्ण रेखा और उसकी सहायक नदी करकरी की रेत में सोने के कण पाए जाते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि स्वर्ण रेखा में सोने के कण, करकरी नदी से ही बहकर आते हैं. करकरी नदी की लंबाई केवल 37 किमी. है. यह एक छोटी नदी है. यह प्रकृति का ऐसा अद्भुत खेल है जिसका पता अभी तक कोई भी लगा ना पाया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि आजतक कितनी ही सरकारी मशीनों द्वारा इस नदी पर शोध किया गया है लेकिन वे इस बात का पता लगाने में असमर्थ रहे हैं कि आखिरकार यह कण जमीन के किस भाग से निकलकर आते हैं.