गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के माध्यम से इस देश की आत्मा भगवान राम को जन-जन में स्थापित करने का काम किया। तुलसीदास केवल एक महाग्रंथ के रचयिता ही नहीं हैं बल्कि उन्होंने माटी के पुतले जैसे सामान्य लोगों में राम नाम की आत्मा भरकर उन्हें नया जीवन दे दिया। मानस के राम भी ऐसे हैं, जो मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि के साथ ऐसा आदर्श स्थापित करते हैं, जो पूरी जीवटता, असीमित आदर्श, सागर की विशालता और शौर्य के पर्याय के साथ भारत के रग-रग में बस जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि की संस्कृत में रचित रामायण को आमजन के पढ़ने योग्य अपनी विशिष्ट शैली में अवधी भाषा में लिखकर तुलसीदासजी ने समाजसुधार का भी बड़ा काम किया।तुलसीदास ने रामचरित मानस में जीवन के हर पहलू, मनुष्य, देव और दानव के व्यवहार और लगभग सभी पक्ष को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया। यहां तक कि लोग रामचरित मानस की चौपाइयों में दिए संकेत के अनुसार अपनी सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं का हल भी पाने लगे। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत कर गोस्वामीजी ने लोगों को मर्यादा में रहना सिखा दिया। सन् 1532 में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उत्तप्रदेश के राजापुर गांव (वर्तमान में बांदा जिले) में तुलसीदासजी का जन्म हुआ। आश्चर्य की बात है कि जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ, तो वे रोए नहीं थे, बल्कि उनके मुख से राम नाम निकला था, इसीलिए उनका नाम रामबोला पड़ गया। भाग्य का खेल था कि बचपन में ही उनके माता-पिता आत्माराम दुबे और हुलसीबाई का निधन हो गया और बालक तुलसीदास को भिक्षावृत्ति करने के लिए विवश होना पड़ा। इस बीच उन्हें जीवन के कई कटु अनुभव मिले।
यह भी अजीब संयोग है कि तुलसीदास की प्रेरणा उनकी पत्नी बनीं। वे बहुत विद्वान थीं, उन्होंने तुलसीदास की युवावस्था के आचरण पर ऐसी टिप्पणी की, कि एक साधारण-सा रामबोला नाम का युवक गोस्वामी तुलसीदास बन गया।
हुआ यूं कि तुलसीदासजी की पत्नी रत्नावली अपने मायके गई हुई थीं। तुलसीदास अपनी पत्नी से इतना प्रेम करते थे कि उन्हें आधी रात में अपनी पत्नी की याद आई तो वे भारी वर्षा के बीच नदी-नाले पार करते हुए अपने ससुराल जा पहुंचे, लेकिन द्वार बंद था। कहते हैं कि वे अपनी पत्नी के कक्ष में खिड़की से प्रवेश कर गए। लेकिन यह कक्ष दूसरी मंजिल पर था।
तुलसीदास को अनायास देखकर रत्नावली ने खिड़की से देखा कि वहां एक बड़ा सांप लटका हुआ था, यानी तुलसीदासजी रात के अंधेरे में सांप को रस्सी समझकर उसके सहारे दूसरी मंजिल तक चढ़ आए थे। अपने प्रति इतनी आसक्ति देखकर रत्नावली दंग रह गईं, उन्होंने उलाहना देते हुए कहा कि यदि इतनी ही आसक्ति आपमें ईश्वर के प्रति होती तो, वे प्राप्त हो जाते। बस तुलसीदास को जैसे ब्रह्म ज्ञान मिल गया, वे उल्टे पांव लौट आए और फिर राम की भक्ति में ऐसे डूबे कि रामचरित मानस, हनुमान चालीसा, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका लिखकर वे अमर हो गए। उनके महाग्रंथ रामचरित मानस पर भगवान शंकर ने सत्यं शिवं सुंदरम् लिखकर उसकी सत्यता को प्रमाणित किया, भगवान राम ने उनसे तिलक लगवाया और हनुुमानजी ने साक्षात दर्शन दिए।
तुलसीदासजी के जीवन में राम का महत्व तो सर्वाधिक रहा ही, लेकिन यह संयोग भी देखिए कि उनके पिता के नाम आत्माराम में राम, गुरु आचार्य रामानंद थे इसमें भी राम है और उनका प्रारंभिक नाम रामबोला था, यानी इसमें भी राम है। तभी तो उन्होंने रामचरित मानस में भी कहा है- सीयराम मय सब जग जानी करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।