सभी ने वह तस्वीर तो देखी ही होगी, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण एक पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठाए हुए हैं और उसके नीचे गोपियां, ग्वालबाल और गायें सुरक्षित रूप से खड़े हुए हैं। इसी स्वरूप के कारण भगवान श्रीकृष्ण के अनेक नामों में एक नाम था गिरधारी… यह नाम उन्हें तब मिला जब उन्होंने इंद्र की नाराजगी के रूप में हुई तेज बारिश से ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। इस पर्वत को पूजने के लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों से कहा था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहते हैं। यह पवित्र पर्वत मथुरा से 22 किलोमीटर की दूरी पर है।
इस पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली से इसलिए उठा लिया था, क्योंकि वे मथुरा, गोकुल, वृंदावन आदि के लोगों को बहुत तेजी से हो रही बारिश से बचाना चाहते थे। नगरवासियों ने अपनी गायों और पशुधन के साथ इस पर्वत के नीचे इकठ्ठा होकर अपनी जान बचाई थी। यह तेज बारिश नाराज इंद्र ने की थी। लोग इंद्र से डरते थे और डर के मारे सभी इंद्र की पूजा करते थे। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि आप डरना छोड़ दे… मैं हूं ना।
कहते हैं कि पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है। वास्तव में यह पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण रोज एक मुट्ठी कम होता जा रहा है। इसी पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगुली पर उठाया था। पौराणिक कथा के अनुसार गिरिराज गोवर्धन को पुलस्त्य ऋषि द्रोणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे। एक और कथा यह भी है कि जब राम सेतु बनाने का कार्य चल रहा था तो हनुमानजी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई कि सेतु बनाने का कार्य पूर्ण हो गया है। यह सुनकर हनुमानजी ने इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दिया और वे दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
आज भी इस पर्वत की परिक्रमा का बड़ा महत्व है। वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो इसकी परिक्रमा अवश्य ही करते हैं क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान श्रीकृष्ण के इसी स्वरूप की आराधना की जाती है, जिसमें उन्होंने बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायां हाथ कमर पर है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से श्रीकृष्ण भक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर की है। परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थानों में आन्यौर, जातिपुरा, मुखारविंद मंदिर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविंद कुंड, पूंछरी का लौठा, दानघाटी इत्यादि हैं। गोवर्धन पर्वत पर सुरभि गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान श्रीकृष्ण के चरण चिह्न अंकित हैं, जो आज भी दिखाई देते हैं। इस प्रकार गोवर्धन पर्वत समूचे सनातन धर्म को मानने वालों के लिए बड़ा तीर्थ स्थान है, जहां पहुंचने पर हर वक्त भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति महसूस की जा सकती है।