गुरु शिष्य परम्परा का महान उदाहरण हैं, गुरु वशिष्ठ और श्रीराम

आज शिक्षक दिवस है. एक ऐसा दिन जो शिक्षा और शिक्षक के सम्मान के प्रति समर्पित है. जीवन का मकसद गुरु के बिना सम्पूर्ण नहीं होता. गुरु अपने शिष्य को जीवन की सही दिशा देते हैं. और शिष्य, गुरु से मिली हुई उस शिक्षा से समाज को सही दिशा देते हैं. और समाज निर्माण के लिए कार्य करते हैं. सम्पूर्ण दुनिया एक व्यवस्था का हिस्सा है. और ये व्यवस्था सदियों से बनी हुई है. इसके बनने में बहुत समय लगा, और इसके बनाने में बहुत समर्पण. अच्छे शिक्षकों ने ऐसे शिष्य तैयार किये, जो सदियों से लेकर आज तक इंसान के लिए उसी परंपरा का मार्गदर्शन करते हैं, जिसे गुरु शिष्य परंपरा कहते हैं. इस देश के लोग इमानदार, सच्चे एवं कर्मठ हैं, इस राष्ट्र की रीढ़ यहाँ की प्राचीन शिक्षा पद्धति है, लोगों की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन शैली है, और गुरु शिष्य परंपरा की महान मिसाल है.

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गुरु शिष्य परम्परा ने समाज को श्रीराम और श्रीकृष्ण के आदर्श दिए. युधिष्ठिर, अर्जुन और कर्ण, जैसे महापुरुष दिए, और इन लोगों ने समाज में महान उदाहरण प्रस्तुत किये. रामायण से भी हमें यही सीख मिलती है कि, जीवन का दूसरा नाम संघर्ष है, जो आगे जाकर श्रीराम को करना पड़ा, और इसकी तैयारी गुरुकुल से ही हो चुकी थी, उन्हें शास्त्रों की शिक्षा के साथ ही आने वाले जीवन की कठिनाइयों के लिए भी तैयार किया जा रहा था. रामायण की महत्ता जीवन में हर जगह है. लोग इसी लिए हमेशा राम राज्य की कल्पना करते हैं, क्योंकि रामराज्य अच्छी शिक्षा और अच्छे शिक्षकों से ही बनता है.

‘अगर गुरु द्रोण नहीं होते, तो अर्जुन इतने महान योद्धा नहीं बनते, चाणक्य नहीं होते, तो चन्द्रगुप्त इतने बड़े विजेता नहीं बनते, स्वामी विवेकानन्द और रामकृष्ण परमहंस हों, या सचिन तेंदुलकर और रमाकांत आचरेकर, जब गुरु और शिष्य, दोनों की तरफ से सम्मान और समर्पण होगा, तभी इस समाज में महापुरुष पैदा होंगे.

संत तुलसीदासजी ने भी रामचरितमानस में लिखा है,

गुरु बिनु भवनिधि तरइ ना कोई|

जों बिरंचि संकर सम कोई||

अर्थात, भले ही कोई ब्रह्मा या शंकर के समान क्यों न हो, पर वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता।