भगवान श्रीराम और उनके भाइयों यानी लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को योग और शिक्षा महर्षि वशिष्ठ ने दी थी। इस बात का प्रमाण है महर्षि वशिष्ठ का योग ग्रंथ। भगवान श्रीराम के लिए रामचरित मानस में तुलसीदासजी ने लिखा है- गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई, मतलब भगवान श्रीराम ने बहुत कम समय में सभी विद्याएं सीख ली थीं। प्रभु श्रीराम और उनके भाइयों के जीवन में गुरु वशिष्ठ के दिए संस्कारों और ज्ञान का बहुत बड़ा योगदान रहा।
रामायण के प्रसंगों में से सबसे महत्वपूर्ण है, श्रीराम और उनके सभी भाइयों की शिक्षा – दीक्षा। एक राजा के बेटे जब शिक्षा हासिल करने के लिए जाते हैं, तो उन्हें अपना सबकुछ राजमहल में ही छोड़कर जाना होता है, गुरुकुल में शास्त्रों की शिक्षा के साथ ही उनसे सभी तरह के कठोर कार्य करवाए जाते हैं, जंगल से लकड़ियाँ लाना, आश्रम की साफ़ सफाई करना, सभी विद्यार्थियों द्वारा मिलकर दैनिक कार्य पूरे करना, ज़मीन पर सोना, सादा भोजन करना, और इन सभी कार्यों के माध्यम से श्रीराम के साथ सभी लोगों को जीवन में संघर्ष के लिए तैयार किया जा रहा था, क्योंकि किसी को नहीं पता, किसके नसीब में क्या है, राजा का बेटा वनवासी हो सकता है, फलफूल खाकर उसे जीवन के दिन निकालने पड़ सकते हैं, जैसा श्रीराम के साथ हुआ, और गुरु भी सच्ची निष्ठा और बिना किसी स्वार्थ के अपने विद्यार्थियों को जीवन में आगे की लड़ाई के लिए तैयार करते हैं, और इसी भावना से सम्मान आता है, जीवन में गुरु का महत्त्व समझ में आता है, और यही विद्यार्थी जब पढ़कर बाहर निकलते हैं तो, उनकी निगाहों में सबके लिए सम्मान, और जीवन में अच्छे काम करने के संकल्प होते हैं।
रामायण की प्रासंगकिता जीवन में हर जगह ज़रूरी है, लोग इसी लिए हमेशा राम राज्य की कल्पना करते हैं, क्योंकि रामराज्य अच्छी शिक्षा और संस्कारों की वजह से ही बनता है।