भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार भगवान हनुमानजी का जन्म ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की सहायता के लिए हुआ था। भगवान हनुमानजी के ह्रदय में प्रभु श्रीराम बसते हैं। रामायण में भगवान हनुमान के बारे में असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। भगवान श्री हनुमान ने अपने पराक्रम से कई बार भगवान श्री राम की सहायता की हैं। हालांकि भगवान श्री हनुमान को बल के साथ-साथ बुद्धि का देवता भी माना जाता हैं। धर्म ग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग हैं जब भगवान श्री हनुमान ने बल का उपयोग करने की बजाय अपनी बुद्धि से अपने लक्ष्य तक पहुंचें।
ऐसा ही एक प्रसंग श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड में भी मिलता है, जब भगवान श्री हनुमान माता सीता की खोज करने के लिए समुद्र पार कर रहे थें। समुद्र पार करते समय उन्हें सुरसा नामक राक्षसी मिली। वह बड़ी दुष्ट और भयंकर थी। सुरसा ने भगवान हनुमान का रास्ता रोक लिया। वह भगवान हनुमान को खाना चाहती थी। भगवान हनुमान चाहते तो अपने बल से सुरसा का वध कर सकते थें, लेकिन उन्होंने लड़ने में समय नहीं गंवाया।
भगवान हनुमान ने सुरसा से हाथ जोड़कर विनती की और कहा कि, मैं माता सीता की खोज करके शीघ्र ही लौटूंगा और प्रभु राम को उनका समाचार दे दूंगा। उसके बाद तुम मुझे खा लेना। लेकिन सुरसा ने ऐसा करने से मना कर दिया और भगवान हनुमान को खाने के लिए अपना मुंह खोला। उस समय हनुमानजी ने अपनी चतुराई से अपने शरीर का आकार बड़ा कर लिया। इस पर सुरसा ने अपना मुंह और बड़ा किया तो भगवान हनुमान ने अपने शरीर का आकार फिर से बड़ा कर लिया। इस तरह दोनों ही अपना-अपना आकार बढ़ाते गए। अंत में भगवान हनुमान ने अपना रूप बहुत छोटा कर लिया और वह सुरसा के बड़े मुंह में प्रवेश करके तुरंत ही वापस बाहर आ गए। भगवान हनुमान की इस चतुराई से सुरसा भी प्रसन्न हो गई और उसने भगवान हनुमान के जाने के लिए रास्ता छोड़ दिया।
सुंदरकांड का यह प्रसंग हमें सिखाता हैं कि जहां बुद्धिमता से समस्या का समाधान हो सकता है, वहां बल का प्रयोग करने से बचना चाहिए। भगवान हनुमान ने जिस तरह बिना समय गंवाए आगे बढ़ने के लिए अपनी बुद्धिमता परिचय दिया। उसी तरह हमें भी अपनी बुद्धि से समस्याओं का समाधान करने आगे बढ़ते रहना चाहिए।