सात अमर महापुरुषों और देवताओं में हनुमानजी का नाम शामिल है और उन्हें कलियुग के सबसे जाग्रत देवता के रूप में भी माना जाता है। सतयुग में तो हनुमानजी ने भगवान श्रीराम के मददगार के रूप में काम करते हुए माता सीता की खोज की थी और रावण का कुल सहित अंत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद हनुमानजी का जिक्र महाभारत युद्ध के समय भी आया है, वे चिरंजीवी होने के कारण महाभारत काल में भी धर्म का साथ दे रहे थे। सभी ने गीता के उपदेश वाले चित्र में श्रीकृष्ण-अर्जुन के रथ की ध्वजा पर हनुमानजी को देखा होगा। इस प्रकार हनुमानजी रामायण काल के बाद महाभारत काल में भी दिखाई दिए थे। कहते तो यहां तक हैं कि हनुमानजी श्रीलंका में हर 47 साल में प्रकट होकर श्रीराम की भक्ति करने वाले जंगल में रहने वाले एक समुदाय के साथ पूरी रात रहकर उनके कार्यक्रम में शामिल होते हैं।
महाभारत युद्ध के समय में हनुमानजी का जिक्र दो बहुत महत्वपूर्ण मौकों पर हुआ है। उन्होंने धर्म और अधर्म के बीच हुए युद्ध में पांडवों का साथ दिया था। पहली बार उन्होंने भीम की शक्ति के अभिमान को तोड़कर उन्हें घमंड न करने की सलाह दी थी। हुआ यूं कि एक बार द्रोपदी ने भीम से कहा कि आप महान वीर हैं। मुझे गंधमादन पर्वत पर मिलने वाला एक विशेष कमल का पुष्प चाहिए। क्या आप वह पुष्प लाकर दे सकते हैं? भीम ने द्रोपदी की बात मान ली। मगर, वे फूल गंधर्वों के थे। उन विशेष फूलों को पाने के लिए भीम और गंधर्वों के बीच युद्ध हुआ और आखिर भीम ने युद्ध जीत लिया और वे द्रोपदी के पास विशेष पुष्प लेकर चल दिए। इस जीत के बाद उन्हें अपनी शक्ति पर घमंड हो गया। संभवत: वे इस बात को भूल गए थे कि उन्हें जीवन में कई और बड़े-बड़े योद्धाओं से सामना करना है। इसलिए उन्हें अभिमान होना उचित नहीं था, इसी कारण उनके घमंड को तोड़ने का काम हनुमानजी ने किया।
भीम कुछ दूर चले ही थे कि मार्ग में उन्हें एक वृद्ध वानर मिला। भीम ने वानर से कहा- तुम्हारी पूंछ मेरे मार्ग में आ रही है, इसे तुरंत हटा लो। वानर ने कहा, भाई आप तो महान बलशाली लगते हैं। मैं वृद्ध और कमजोर वानर हूं, अपनी पूंछ हटाने की ताकत भी नहीं है। आप ही मेरी पूंछ हटाकर आगे बढ़ जाइए। भीम सोचने लगे, विचित्र वानर है, अपनी पूंछ भी नहीं हटा सकता, परंतु मुझमें तो अपार शक्ति है। इसने मेरी ताकत को ललकारा है। मैं अभी इसकी पूंछ हटा देता हूं। इसके बाद भीम अपनी भरपूर शक्ति लगाकर भी पूंछ हिला तक नहीं पाए। तब भीम ने हार मान ली और बोले, आप कोई मामूली वानर नहीं हैं। मैं आपकी ताकत को प्रणाम करता हूं और जानना चाहता हूं कि आप कौन हैं? तब हनुमानजी अपने वास्तविक स्वरूप में आए। उन्होंने भीम को आशीर्वाद दिया और कभी भी अपनी ताकत का अभिमान न करने की सीख दी। अब भीम को अपनी गलती का अहसास हो गया था। उन्होंने हनुमानजी को कभी घमंड न करने का वचन दिया और हनुमानजी को प्रणाम कर आगे चले गए।
इसी तरह जब भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण की प्रशंसा की तो अर्जुन को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने अभिमान के साथ पूछा कि कर्ण किस मामले में मुझसे बेहतर है। दरअसल, महाभारत युद्ध में जब अर्जुन अपने तीर मारते थे, तो कर्ण का रथ कई मीटर पीछे खिसक जाता था। वहीं, जब कर्ण तीर चलाते तो अर्जुन का रथ थोड़ा-सा हिलता भर था। इसके बावजूद कर्ण के हर वार पर अनायास ही भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकलता था, वाह। इसे सुनकर अर्जुन को अचरज के साथ जलन भी हुई। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा, जब मैं कर्ण के रथ को अपने तीरों से काफी दूर पीछे धकेल देता हूं, तो आप चुप रहते हैं। वहीं, जब कर्ण मेरे रथ को अपने तीरों से हल्का- सा हिला भी देता है, तो आप उसकी प्रशंसा करते हैं। ऐसा क्यों? तब श्रीकृष्ण ने बताया, अर्जुन तुम्हारे रथ की ध्वजा पर साक्षात हनुमानजी विराजमान हैं। इसके बाद मैं स्वयं पूरी सृष्टि का भार लिए तुम्हारे रथ पर बैठा हूं। इसके बावजूद कर्ण तुम्हारे रथ को हिला रहा है। सोचो, यदि हम तुम्हारे साथ न होते, तो तुम्हारा रथ कहां होता। इसके बाद तुरंत अर्जुन को कर्ण की ताकत का अहसास हो गया।
बताते हैं कि जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ, तो भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले अर्जुन को रथ से उतरने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने हनुमानजी को युद्ध में उनके साथ रहने के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें ध्वज से जाने को कहा। आखिर में श्रीकृष्ण रथ से उतरे। उनके रथ से नीचे आते ही, अर्जुन का रथ जलकर राख हो गया। अर्जुन एक बार फिर चौंक गए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि कर्ण के बाणों से तुम्हारा यह रथ न जाने कब का जलकर राख हो गया होता। मगर, हनुमानजी के रथ पर मौजूद रहने और मेरे हाथ में रथ की कमान होने के कारण दिव्यास्त्रों से तुम्हारा रथ युद्ध के अंत तक सुरक्षित रहा। इस प्रकार हनुमानजी ने राम-रावण युद्ध के बाद महाभारत युद्ध में भी धर्म की जीत के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।