भगवान श्रीराम ने धरती पर अवतार लेकर मानवजाति का मार्गदर्शन भी किया और कई लोगों का उद्धार किया। उनमें से ही एक थीं देवी अहिल्या। देवताओं के राजा इंद्र की गलती के कारण देवी अहिल्या के पति गौतम ऋषि ने उन्हें श्राप देकर पत्थर बना दिया था। लंबे समय के बाद प्रभु श्रीराम के चरण स्पर्श से उनका श्राप खत्म हुआ और वापस हमें नारी रूप मिला।
हुआ यूं था कि देवी अहिल्या को स्वयं ब्रह्मा जी ने बनाया था, वे काफी सुंदर थीं और उन्हें वरदान था कि उनका रूप और सौंदर्य सदैव बना रहेगा। देवी अहिल्या के सौंदर्य के आगे स्वर्ग की अप्सराएं भी कम ही थीं। इसी कारण देवी अहिल्या से देवता भी विवाह करने के इच्छुक थे। यह देखते हुए ब्रह्मा जी ने अपनी मानस पुत्री अहिल्या के विवाह के लिए एक शर्त रखी और तय किया कि जो भी उस परीक्षा का विजेता होगा, अहिल्या का विवाह उसी से होगा।
ब्रह्मा जी की परीक्षा में अत्रि ऋषि के पुत्र महर्षि गौतम विजेता रहे और अहिल्या का विवाह उनके साथ विधि पूर्वक किया गया। देवताओं के राजा इंद्र भी देवी अहिल्या पर मोहित थे, वे देवी अहिल्या से मिलने के लिए युक्तियां करने लगे। महर्षि गौतम के होते हुए अहिल्या से नहीं मिल सकते थे, इसलिए उन्होंने चंद्रदेव को अपने साथ मिलाकर कुछ माया रची। महर्षि गौतम प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा तट पर स्नान करने जाते थे। इंद्र ने माया करके मुर्गे की बांग दी, जिससे महर्षि गौतम भ्रमित हो गए और वह स्नान के लिए गंगा तट के लिए निकल पड़े। महर्षि के जाते ही इंद्र ने महर्षि गौतम का वेश धारण कर लिया और देवी अहिल्या से मिलने के लिए कुटिया में प्रवेश किया।
इसी बीच, महर्षि गंगा किनारे पहुंचे तो गंगा मैया ने प्रकट होकर गौतम ऋषि को इंद्र के मायाजाल के बारे में बता दिया। महर्षि तुरंत कुटिया की ओर लौटे और क्रोध से भर गए। उन्होंने चंद्रमा को कुटिया के बाहर खड़े देखा तो अपना कमंडल दे मारा और श्राप दिया कि उस पर हमेशा राहु की कुदृष्टि रहेगी। तब से ही चंद्रमा पर काला दाग है। इधर, महर्षि के लौट आने का आभास होते ही इंद्र जाने लगे। महर्षि ने इंद्र को भी श्राप दिया कि उन्हें कभी सम्मान से नहीं देखा जाएगा न ही उनकी पूजा होगी।
देवी अहिल्या भी भ्रमित थीं, इंद्र जब अपने मूल स्वरूप में आए तो उन्हें सत्य का एहसास हुआ। उनके पति महर्षि गौतम अत्यंत क्रोधित थे और उन्होंने देवी अहिल्या को भी श्राप दे दिया कि वह अनंत समय के लिए पत्थर बन जाएं। जब महर्षि को भी एहसास हुआ कि इंद्र के छल के कारण देवी अहिल्या भ्रमित थीं उनकी कोई गलती नहीं है तो वे पश्चाताप करने लगे। अपना श्राप वापस नहीं ले सकते थे इसलिए वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने पत्थर बनी अहिल्या से कहा, जिस दिन तुम्हारी शिला पर किसी दिव्य आत्मा के चरणों की धूल स्पर्श होगी, उसी दिन तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी और तुम अपने पहले वाले स्वरूप में लौट आओगी।
इसके बाद ऋषि गौतम तपस्या के लिए हिमालय चले गए। महर्षि गौतम की कुटिया में देवी अहिल्या की शिला युगों- युगों से अपनी मुक्ति की प्रतीक्षा कर रही थी। इसके बाद जब भगवान श्रीराम महर्षि विश्वामित्र के साथ ताड़का वध के लिए आगे बढ़ रहे थे, तब प्रभु की दृष्टि महर्षि गौतम की कुटिया पर पड़ी तो वे वहां रुक गए। कुटिया वीरान थी पशु-पक्षी की आवाज तक सुनाई नहीं दे रही थी। भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से उस शिला के बारे में पूछा तो महर्षि विश्वामित्र ने देवी अहिल्या की पूरी कथा सुनाई। महर्षि विश्वामित्र ने कहा, हे राम यह शिला कई युगों से तुम्हारे चरणों की धूल की प्रतीक्षा कर रही है। आगे बढ़कर इसका उद्धार करो। भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र जी की बात सुनते ही अपने चरण से शिला का स्पर्श किया, तो वह सुंदर नारी में परिणित हो गई। देवी अहिल्या ने प्रभु श्रीराम का अभिवादन किया और निवेदन किया कि वह चाहती है कि महर्षि गौतम उन्हें क्षमा करके फिर से अपने जीवन में स्थान दें। भगवान श्रीराम कहते हैं, देवी आपकी कोई गलती नहीं थी महर्षि गौतम आपसे क्रोधित नहीं है बल्कि दुखी हैं। इसके बाद देवी अहिल्या जैसे ही कुटिया से बाहर आती हैं, पक्षियों की चहचहाहट शुरू हो जाती है और भगवान राम सीता स्वयंवर के लिए आगे बढ़ते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो भगवान श्रीराम का अवतार सिर्फ रावण और राक्षसों के अंत के लिए ही नहीं हुआ, बल्कि कई शापित लोगों को उन्होंने तार दिया और कई तपस्वियों का कल्याण किया।