गंधमादन पर्वत से छलांग लगाकर लंका के लिए उड़े हनुमान जी के रास्ते में कई तरह के व्यवधान आए परंतु वे बिना कहीं रुके सीधे लंका पहुंचे।
पहला व्यवधान मैनाक पर्वत के रूप में जो उन्हें अपने ऊपर विश्राम करा कर थोड़ा सुख देना चाहते थे पर हनुमान जी ने कहा कि मैं एक लक्ष्य लेकर निकला हूं और जब तक लक्ष्य पूरा ना हो जाए मुझे विश्राम करने का अधिकार नहीं है। हमें भी सीखना चाहिए कि अगर हम किसी काम के लिए निकलें तो जब तक काम सिद्ध ना हो जाए तब तक आराम नहीं करना चाहिए। हमारा डेडीकेशन जितना स्ट्रांग होगा हम अपने काम को उतनी जल्दी और उतने ही अच्छे से पूरा कर पाएंगे।
दूसरा व्यवधान सुरसा नाम की सर्पों की माता हनुमान जी का रास्ता रोककर उन्हें खाने का प्रयास करती है। हनुमान जी राम काम की बात बता कर सुरसा से उन्हें जाने देने का अनुरोध करते हैं तो सुरसा कहती है कि अपनी जगह किसी और जीव को मेरा भोजन बनाकर भेज दो तो मैं तुम्हें जाने दूंगी।
हनुमान जी कहते हैं यह तो बहुत बड़ा पाप होगा कि मैं अपना प्राण बचाने के लिए किसी और जीव को तुम्हें खाने के लिए दे दूं। आज हम अपना प्राण बचाना तो बहुत बड़ा उद्देश्य हुआ, अपने छोटे-छोटे उद्देश्य मतलब जीभ के स्वाद के लिए, छोटे-मोटे शौक के लिए भी दूसरे जीवो का की जान दांव पर लगा देते हैं, उनकी हत्या कर देते हैं। इशारा मांसाहार की तरफ है।
Jai Shriram 🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Montag, 25. Mai 2020
हनुमान जी जैसा बलवान उस समय शायद ही कोई धरती पर रहा हो परंतु उन्होंने कभी अपने स्वार्थ के लिए या अपना बल बढ़ाने के लिए जीव हत्या नहीं की। वहीं आज हम स्वयं को पता नहीं कितने आलतू फालतू तर्क देकर जीव हत्या का कारण बनाते हैं।
हनुमान जी के मार्ग में एक और बाधा आई सिंहिका नाम की राक्षसी जो आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की छाया पकड़ लेती थी जिससे वो उड़ नहीं पाते थे और फिर उन्हें खा जाती थी हनुमान जी ने उसका वध किया और लंका पहुंचे। समुद्र में घटित होने वाली रामायण काल की ये घटना आज के संदर्भ में देखा जाए तो बारमूडा ट्रायंगल मानी जा सकती है। समुद्र के अंदर की ये दोनों शक्तियां एक जैसी लगती हैं, बारमूडा ट्रायंगल के ऊपर से भी उड़कर कुछ भी बाहर नहीं जा सकता सब उसी में समा जाता है।
इस प्रकार हनुमान जी सारी बाधाएं पार करके लंका पहुंचते हैं— सत्य भी है—जिसके पास धीरज समझ बुद्धि और पराक्रम हो उसकी सफलता सर्वदा निश्चित है।
लंका पहुंचकर बड़ी चतुराई से लंकिनी को मारकर हनुमान जी लंका में रावण का महल आदि घूमते घूमते विभीषण का घर देखते हैं जहां राम भक्ति की निशानियां हैं और वो विभीषण से मिलते हैं। एक दूसरे का परिचय जानकर विभीषण जी हनुमान जी के पैर छूते हैं तो हनुमानजी उन्हें उठाकर गले लगाते हैं और कहते हैं कि सेवक मात्र सेवक होता है उसमें छोटा बड़ा क्या। इस प्रसंग में सीखने वाली बात ये है कि आज हम अपने कार्य क्षेत्र में जूनियर सीनियर का कितना भेदभाव करते हैं।
विभीषण के कहने पर हनुमान जी अशोक वाटिका में जाकर सीता जी को देखते हैं जहां सीता जी रावण और उसकी समर्थित राक्षसियों द्वारा नाना प्रकार से सताई गई अपने दृढ़ निश्चय पर अटल हैं।
एक तरफ त्रिलोक विजयी रावण, सोने की लंका, त्रिभुवन में फैला साम्राज्य और दूसरी तरफ लक्ष्मण के साथ वन वन भटकते राम।
परंतु सीता जी का अपने स्वामी, अपने पति श्री राम के प्रति समर्पण अटल है। कोई भी लालच या भय उसे डिगा नहीं सकता।
ये है आर्य नारी का पतिव्रत धर्म।
उचित समय पाकर सीता जी को राम जी की निशानी देकर हनुमान जी यह सोचकर धन्य हो रहे हैं कि उनका आधा उद्देश्य पूरा हुआ।