अगर लकड़ी आग से बाहर नहीं आती, तो नहीं समझ पाते ये बात

मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसके लिए अकेले रहना बहुत मुश्किल है. लोगों से घुलना-मिलना, मजाक-मस्ती करना,ये मनुष्य की फितरत भी है और ज़रूरत भी है. इस बात को आप एक उदहारण के जरिए समझिए. एक अकेले इंसान को कोई भी हरा सकता है यदि वही व्यक्ति ग्रुप में रहता है तो उसे हराने की सोच भी नहीं सकता. अर्थात जीवन में कुछ भी हासिल करना है तो दृढ़ता के साथ साथ अच्छी संगति भी हो तो सफलता निश्चित है. आज के इस आर्टिकल में हम बता रहे हैं कि अगर आप कोई भी कार्य ग्रुप में करते हैं तो उसमे गलती होने के आसार कम रहते हैं.

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आज के विषय को एक कहानी के जरिए समझते हैं. प्राचीन काल में बहुत बड़ा आश्रम था जहां एक गुरुकुल में बहुत सारे बच्चे एक साथ रहा करते थे. इस गुरुकुल में सभी बच्चे अलग-अलग कुटिया में रहा करते थे. इन सभी बच्चों में से एक बच्चा ऐसा था जो सभी के साथ घुल मिल कर रहता था, सभी का सम्मान करता था. फिर कुछ समय बाद अचानाक इस बच्चे के बर्ताव में बदलाव देखा गया जैसे वह अकेला रहने लगा. इस बच्चे ने मिलना जुलना बंद कर दिया. यह देख सभी आश्चर्यचकित हो गए और किसी को अंदाजा नहीं था कि आखिकर किस वजह से इस बच्चे ने सभी से बाते करना बंद कर दिया. फिर एक दिन सभी बच्चे अपने गुरु के पास गए और इस विषय के बारे में गुरुजी से चर्चा की.

सर्दी का महीना था इस कारण गुरुकुल में हाथ सेकने के लिए लकड़ियां जलाई गईं थी. एक शाम गुरुजी उस बच्चे के पास गए जो ठंड के कारण जलती लकड़ियों के समक्ष बैठा था. गुरुजी को देख बच्चे ने उनका अभिवादन किया और फिर कुछ दूर जा कर बैंठ गया. बहुत देर तक दोनों शांत थे. कुछ देर बाद गुरुजी ने उन जलती हुई लकड़ियों में से एक जलती हुई लकड़ी निकालकर अलग रख दी. फिर कुछ क्षण बाद यह लकड़ी बुझ गई. और थोड़ी देर बाद गुरुजी ने फिर उस लकड़ी को आग के हवाले कर दिया. यह बच्चा गुरुजी की सभी गतिविधियों को बड़े ध्यान से देख रहा था . इसके बाद गुरुजी कुटिया से बाहर जाने लगे तभी इस बच्चे ने गुरूजी से कहा, “गुरुजी धन्यवाद मेरा मार्गदर्शन करने के लिए, आप मुझे जो संदेश देना चाह रहे थे वो मैं समझ गया हूं. अब से मैं संगठन में रहूंगा.”

कहानी से मिलती है सीख

ऊपर बताई बातों से यह सीख मिलती है कि हमें अगर जीवन में सफल होना है तो सबसे पहले “मैं” को छोड़ “हम” का दामन थामना होगा. अर्थात् एकता में ही अनेकता होती है. संगठन में रहने वाला व्यक्ति बड़ी से बड़ी परेशानी कम समय में दूर कर लेता, और अकेले व्यक्ति को छोटी सी छोटी परेशानी भी बड़ी लगती है. अर्थात, उसका हल निकालने में वह असमर्थ रहता है.