अट्ठारह में दसवां पुराण है ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’। इसमें ब्रह्माजी द्वारा भूमंडल, जलमंडल, वायुमंडल में नाना प्रकार के जीवों की उत्पत्ति के कारण और उनके पालन पोषण का विस्तार से वर्णन है। यह एक वैष्णव पुराण है जिसमें श्रीकृष्ण को ही प्रमुख ईश मानकर उनकी महिमा और उपासना बताई गई है। शाब्दिक रूप से ब्रह्म का विवर्त अर्थात ब्रह्म का रूपांतर ही ब्रह्मवैवर्त है। ब्रह्मा का प्रतिरूप प्रकृति को माना जाता है, इस प्रकार जहां प्रकृति के विभिन्न स्वरूप और स्वभाव का वर्णन हो वही है ब्रह्मवैवर्त।ImageSource
वैसे तो श्रीकृष्ण की लीलाओं की कथा कई पुराणों में है परंतु इस पुराण में वर्णित कृष्ण लीला विशेष है और बाकी सब से अलग है यहाँ तक कि श्रीमद्भागवत पुराण की लीला से भी अलग कृष्ण लीला ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है। इस पुराण में वर्णित लीलाएं और कथानक श्रृंगार रस से परिपूर्ण हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण कहता है कि सृष्टि में असंख्य ब्रह्माण्ड हैं और प्रत्येक ब्रह्माण्ड के अपने-अपने ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। इन सभी ब्रह्माण्डों से बहुत दूर और बहुत ऊपर गोलोक है जहां श्रीकृष्ण का शाश्वत निवास है।
सृष्टि निर्माण के प्रारंभ में सबसे पहले श्रीकृष्ण के बाएं भाग से श्रीराधा जी प्रकट हुईं। कृष्ण से ही काल, धर्म और प्रकृति उत्पन्न हुए। पुनः श्रीकृष्ण के दाएं अंग से नारायण और बाएं अंग से पंचमुखी शिव उत्पन्न हुए। नाभि से ब्रह्मा जी, मुख से सरस्वती और श्रीकृष्ण के अन्य विभिन्न अंगों से दुर्गा जी, सावित्री जी, कामदेव, रति, अग्नि, वरुण, वायु आदि भिन्न-भिन्न देवी देवता उत्पन्न हुए।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कुल अट्ठारह हजार (18000) श्लोक, दो सौ अट्ठारह (218) अध्याय और चार खंड हैं –
ब्रह्म खंड, प्रकृति खंड,
गणपति खंड, श्रीकृष्ण खंड
ब्रह्म खंड- ब्रह्मवैवर्त पुराण के इस प्रथम खंड में श्रीकृष्ण के अंगों से सृष्टि के संचालक और अधिकारी देवी देवताओं के उत्पन्न होने की कथा है। इस खंड में भगवान सूर्य देव द्वारा संकलित की हुई ‘आयुर्वेद संहिता’ का भी उल्लेख है। इसी खंड में श्रीकृष्ण के बाएं भाग से राधा जी की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है।
प्रकृति खंड – इस खंड में विभिन्न देवियों की उत्पत्ति, उनके स्वरूप और उनकी शक्तियों का वर्णन है। खंड के प्रारंभ में पंचदेवी स्वरूपा प्रकृति का वर्णन है, ये पंचदेवियाँ हैं- यशदुर्गा, महालक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री और सावित्री। सर्वोपरि स्वरूप श्री राजेश्वरी राधारानी का बताया गया है, राधा जी की पूजा उपासना का विधान तथा उपरोक्त देवियों के चरित्र, स्वभाव, प्रभाव, महत्व और उपासना विधि का वर्णन इसी खंड में है।
गणपति खंड – इस खंड में गणेश जी के जन्म, उनके चरित्र और उनकी लीलाओं का विस्तार से वर्णन है। गणेश जी का शीश कटने और हाथी का शीश लगाए जाने की कथा, गणेश जी के आठ विघ्न विनाशक नाम- विघ्नेश, गणेश, हेरम्ब, गजानन, लंबोदर, एकदंत, सुपकर्ण, विनायक की सूची दी गई है। इसी खंड में ‘सूर्य कवच’ और ‘सूर्य स्तोत्र’ भी है। दशाक्षरी विद्या, काली कवच और दुर्गा कवच गणपति खंड में ही वर्णित हैं।
श्रीकृष्ण खंड – ब्रह्मवैवर्त पुराण का यह एक सौ एक (101) अध्यायों वाला सबसे बड़ा खंड है। इसमें श्रीकृष्ण लीला का श्रृंगारिक वर्णन है जिसमें बाल लीला, कालिया मर्दन, गौरी व्रत कथा, रासलीला, वृंदावन आदि का वर्णन है। सौभाग्य बढ़ाने वाली लगभग सौ (100) वस्तुओं, साधनों और उपायों का वर्णन है। विशेष तिथियों में विशेष तीर्थों में स्नान – दान का महत्व और उनका फल बताया गया है। ‘श्रीकृष्ण कवच’, बलराम जी के नौ नाम, राधा जी के सोलह नाम, भगवान श्रीकृष्ण के ग्यारह नाम तथा अन्न दान की महिमा का वर्णन ब्रह्म वैवर्त पुराण के कृष्ण खंड में मिलता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार कलयुग के प्रभाव में मनुष्य की आयु सौ वर्ष से प्रारंभ होगी परंतु धीरे-धीरे बहुत कम हो जाएगी और बीस (20) वर्ष की आयु में मनुष्यों की मृत्यु होने लगेगी, युवावस्था समाप्त हो जाएगी, गंगा जी बैकुंठ लौट जाएंगी। अधर्म बढ़ेगा तो कल्कि अवतार द्वारा धर्म का स्थापन होगा। मूसलाधार बारिश द्वारा प्रलय होगी और सारी पृथ्वी जल में डूब जाएगी सभी जीवों का अंत हो जाएगा । एक लाख सत्तर हजार (170000) साल के संधिकाल (दो युगों के बीच का अंतर) के बाद एक साथ बारह सूर्य उदय होंगे, पृथ्वी पर जल सूखेगा और पुनः सतयुग का शुभारंभ होगा और मानव सभ्यता का विकास होगा।
ॐ तत्सत