जब विनम्रता से भरे गोखले जी से असभ्य अंग्रेज को माँगनी पड़ी माफ़ी

मनुष्य का जीवन संघर्ष से भरा होता है. इंसान अपने जीवन में अलग-अलग भावनाओं का एहसास करता है. मनुष्य जीवन के हर रस से गुजरता है. वो कभी खुश होता है तो कभी दुखी होता है. आधुनिक दुनिया में लगभग सभी धन कमाने में लगे हुए हैं. धन के चक्कर में बहुत सारे लोगों का आपसी व्यवहार खराब होता जा रहा है. जबकि मनुष्य को पता है कि जब इस दुनिया से जाएंगे तब सिर्फ व्यवहार ही है जिससे वे जाने जाएंगे. जीवन में हर वर्ग को खुश करना मुश्किल है पर कोशिश करना कोई गलत बात नहीं. हमें आज के जमाने में बस छोटी छोटी चीज़ों का ध्यान रखना है, नहीं तो छोटी चीज़ें बाद में जी का जंजाल बन जाती है.

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आज के इस आर्टिकल में हम बात कर रहे हैं कि मनुष्य को अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो उसे माफ करना आना चाहिए. ऐसा करने से हमारा ब्लड प्रेशर सामान्य रहेगा और समय की बचत भी होगी. एक कहानी के जरिए इस विषय को समझते हैं.

बात उस समय की है जब हमारा भारत अंग्रेजों की गिरफ्त में हुआ करता था. गोपाल कृष्ण गोखले जी से जुड़ी एक घटना है. जानकारी के अनुसार वे काउंसिल ऑफ वायसराय के मेंबर थे. एक रोज गोखले जी को कहीं जाना था उन्होंने ट्रेन के फर्स्ट क्लास के डिब्बे में सफर किया था. उस वक्त एक अंग्रेज अधिकारी भी उस डिब्बे में आकर उनके पास बैठ गए.

गोखले जी को फर्स्ट क्लास में बैठा देख अंग्रेज को बहुत गुस्सा आया. गुस्सा इसलिए आया क्योंकि वे भारतीय है और फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे और ये अंग्रेज उन्हें पहचान नहीं पाया था. उसका गुस्सा इतना बढ़ गया कि उसने गोखले जी का सामान ही डिब्बे से नीचे फेंक दिया. यह सारी घटना गोखले जी के एक सहयोगी ने भी देखी और अंग्रेज से कहा, जिनका सामान आपने फेंका है वे वायसराय काउंसिल के मेंबर हैं.

ये बातें सुनकर, इस अंग्रेज ने आदरपूर्वक गोखले जी का सामान उठाकर वापस ट्रेन में उसी जगह रख दिया और उनसे क्षमा मांगने लगा. क्योंकि गोखलेजी का स्वभाव विनम्र था इसलिए उन्होंने उसे माफ कर दिया. लेकिन इनके सहयोगी का गुस्सा अब तक शांत नहीं हुआ था. और क्रोध के चलते उन्होंने लॉर्ड कर्जन को एक पत्र लिखना शुरु किया जिससे उस अंग्रेज को सजा मिल जाए.

यह सब गोखले जी ने देखा और अपने सहयोगी से कहा आप ऐसा कर के अपना समय और ऊर्जा दोनों खत्म कर रहे हैं. जिसने गलती की उसने माफी मांग ली है और अब बात वहीं खत्म हो गई. अगर हमें अपनी ऊर्जा लगाना ही है तो काले-गोरे का भेद खत्म करने में लगाना चाहिए.’

गोखले जी की कहानी से यह सीख मिलती है
अगर कोई व्यक्ति गलती करने के बाद क्षमा मांगता है तो उसे माफ कर अपनी ऊर्जा और समय को बचाना चाहिए. शिकायत या गुस्सा करके हमें कुछ हासिल नहीं होगा. हमें तो अपनी ऊर्जा और समय को भविष्य बेहतर करने में लगाना चाहिए.