भारत में छोटे-बड़े कई राजा-महाराजा रहे हैं। इसी कारण इसे किलों और महलों का देश भी कहते हैं। देश के प्रमुख किलों में आगरा के किला का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। इसके लगभग ढाई किलोमीटर दूर विश्व प्रसिद्ध स्मारक ताज महल मौजूद है।
आगरा के किले का आधा गोलाई लिए नक्शा है, जो कि सीधी ओर से यमुना नदी के समानांतर है। इसकी चहारदीवारी 70 फीट ऊंची है। इसमें दोहरे परकोटे हैं, जिनके बीच में भारी बुर्ज बने हुए हैं। किले में सुरक्षा के लिए तोपों के झरोखे और रक्षा चौकियां भी बनी हैं। इसके चार कोनों पर चार दरवाजे हैं, जिनमें से एक खिजड़ी द्वार नदी की ओर खुलता है। यह मूलत: ईंटों का किला था, जो सिकरवार वंश के राजपूतों के अधिकार में था। इस किले का अस्तित्व सन् 1080 के इतिहास में भी आता है। तब इस किले को बादलगढ़ कहा जाता था। बाद में आक्रमण करने वालों ने ही इसे दोबारा लाल बलुआ पत्थर से बनवाया। इसे अंदर से ईंटों से बनवाया गया और बाहर की तरफ लाल बलुआ पत्थर लगवाए गए। इसके निर्माण में 14 लाख 44 हजार कारीगर और मजदूरों ने आठ वर्षों तक मेहनत की और आखिर यह किला सन् 1573 में बन कर तैयार हुआ।
इस किले के दो दरवाजों को दिल्ली गेट और ग्वालियर गेट या फिर दक्षिण दिशा में होने से इसे दखिनाई दरवाजे कहते हैं। इस दखिनाई गेट को अमरसिंह द्वार भी कहा जाता है। शहर की ओर का दिल्ली द्वार, चारों दरवाजों में भव्यतम है। इसके अंदर एक और दरवाजा है, जिसे हाथी पोल कहते हैं, जिसके दोनों ओर पाषाण की हाथी की मूर्तियां हैं, जिनके सवार रक्षक की तरह दिखाई देते हैं। एक द्वार खाई पर बना है। किले में एक चोर दरवाजा भी है, जो इसे सुरक्षित बनाते हैं।
यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण किला है। भारत पर आक्रामण करने वाले यहीं रहा करते थे और यहीं से पूरे भारत पर शासन किया करते थे। यहां राज्य का सर्वाधिक खजाना, सम्पत्ति व टकसाल थी। इस संपत्ति में ही एक हीरा भी था जो कि बाद में कोहिनूर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां विदेशी राजदूत, यात्री व उच्च पदस्थ लोगों का आना- जाना लगा रहता था, जिन्होंने भारत के इतिहास को रचा।