सिंंधिया के अलावा रानी लक्ष्मीबाई ने भी बचाया किला
हमारे देश में किलों की कोई कमी नहीं है, ऐसे में मध्यप्रदेश भी पीछे नहीं हैं, क्योंकि यहां कई छोटे-बड़े किले हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध है ग्वालियर का किला। इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था। तीन वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है। मध्य काल में बना यह किला शानदार निर्माण कला का एक बेजोड़ उदाहरण है। यह ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है जो गोपांचल नाम की एक पहाड़ी पर स्थित है। लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया यह किला देश के सबसे बड़े किलों में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।
ग्वालियर के किले का निर्माण सन् 727 में सूर्यसेन नामक एक सरदार ने किया, जो इस किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था। इस किले पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया था। बघेल शासकों ने ग्वालियर पर लगभग 600 से 700 साल तक शासन किया। किला बनने के बाद लगभग 989 सालों तक इस पर पाल वंश का शासन रहा है। इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश ने राज किया। अन्य किलों की तरह इस पर भी कई आक्रमण हुए। बाद में महाराजा देववरम ने ग्वालियर में तोमर राज्य की स्थापना की। इस वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा थे मानसिंह (1486-1516), जिन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गुजारी महल बनवाया। सन् 1398 से 1505 तक इस किले पर तोमर वंश ने राज किया। इस किले पर राणा और जाटों का भी राज रहा, फिर इस पर मराठों ने विजय हासिल की।
बाद में 1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अधिकार किया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा।
1779 में सिंधिया कुल के मराठा छत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी। 1780 में गौंड राणा छतर सिंह ने मराठों पर जीत हासिल कर इस किले पर कब्जा कर लिया, लेकिन इसके बाद 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल कर लिया। 1804 और 1844 के बीच इस किले पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच कई बार नियंत्रण बदलता रहा। इसके बाद जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला फिर सिंधिया के काबू में आ गया।
ग्वालियर के किले पर 1 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने मराठाओं के साथ मिलकर इस किले को हासिल किया, लेकिन इस जीत के जश्न के बीच 16 जून को जनरल ह्यूज के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना ने हमला कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई खूब लड़ीं और अंग्रेजों को किले पर कब्जा नहीं करने दिया, लेकिन इस दौरान उन्हें गोली लग गई और अगले दिन 17 जून को ही उनका निधन हो गया। यह ग्वालियर की लड़ाई के नाम से जानी जाती है।
किला खास तौर पर दो भागों में बंटा है- मुख्य किला और महल। किले में कई ऐतिहासिक स्मारक, बुद्ध और जैन मंदिर के साथ ही गुजारी महल, मानसिंह महल, करण महल सहित कुछ और महल भी मौजूद हैं। इसके अलावा यहां मौजूद 10वीं सदी में बना सहस्त्रबाहु मंदिर और भीम सिंह की छतरी भी सैलानियों का ध्यान खींचते हैं। इस तरह ग्वालियर का किला भारतीय राजघरानों की परंपरा और आजादी की लड़ाई का गवाह है।