भारत के गौरवशाली किले-छत्रपति शिवाजी का पसंदीदा पन्हाला किला

भारत के प्रमुख किलों और महलों में महाराष्ट्र के किले भी अपने इतिहास की कहानी बताते नजर आते हैं। कोल्हापुर जिले का पन्हाला दुर्ग इन्हीं में से एक है, जो कई मराठा राजवंश की गाथा के साथ ही छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम से भी जुड़ा हुआ है। पन्हाला दुर्ग का निर्माण सन् 1178 में किया गया था लेकिन इसके साथ 15 और किले बनाए गए थे। पन्हाला सहित इन 15 किलों में बावदा, भुदरगड, सातारा और विशालागढ़ किले शामिल हैं। पन्हाला दुर्ग को पन्हालगढ़, पनाला या पहाला के नाम से भी जाना जाता है। यह कोल्हापुर जिले के दक्षिण पूर्व से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।ImageSource

पन्हाला दुर्ग दक्खन के बड़े किलों में से एक है। इसका निर्माण शिल्हर शासक भोज द्वितीय ने सन् 1178 से 1209 के बीच सहयाद्रि पर्वत माला से जुड़ी ऊंची पहाड़ी पर करवाया था। इस किले का आकार-प्रकार कुछ त्रिकोण-सा है और चारों ओर के परकोटे की लंबाई लगभग सवा सात किलोमीटर है।

यह किला कई राजवंशों के अधीन रहा था। छत्रपति शिवाजी ने कई प्रयासों के बाद पन्हाला किले पर 1651 में विजय प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इस किले को अपना मुख्यालय बना लिया था। शिवाजी अधिकतर किसी न किसी सैनिक अभियान में लगे रहे, लेकिन यही वह किला है, जहां उन्होंने सबसे अधिक समय बिताया था। सन् 1678 में जब शिवाजी महाराज का पन्हाला किले पर शासन था तो उस वक्त किले में 15,000 घोड़े और 20,000 सेना थी। 1689 के बाद दो बार यह किला आक्रामकों ने हथिया लिया था, लेकिन हर बार मराठे उसे वापस लेने में सफल रहे।इस किले तक पहुंचने के लिए तालाब के सामने से होते हुए थोड़ा आगे बढ़ने पर तीन दरवाजे से प्रवेश किया जाता है।ImageSource

किले में एक कोठी है, जिसे सजा कोठी कहा जाता है। इस किले के अंदर ही अन्न भंडारण में उपयोग किए जाने वाला अम्बरखाना है। यहां पानी के लिए जल संग्रहण की अच्छी व्यवस्था है। इस किले की दीवारों और दरवाजों को मजबूत बनाने पर विशेष ध्यान दिया था और इस काम को पूरा करने के लिए कई साल लगे। कुछ दीवारों और दरवाजों में पत्थरों के जोड़ जहां होते हैं, वहां शीशा भरा गया है। इससे किला काफी मजबूत हो गया है। इसी तरह जब देश के प्रमुख किलों की बात होती है तो महाराष्ट्र के पन्हाला के किले का जिक्र जरूर आता है। इस किले से मराठा राजवंश की बहुत-सी यादें हैं। छत्रपति शिवाजी से जुड़े होने के कारण भी इसे देखने के लिए सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।