भारत के गौरवशाली किले : कब बना कांगड़ा फोर्ट आज‌ तक नहीं जाना कोई

पुराने समय में राजा-महाराजाओं की पहचान वाले हमारे भारत में किलों की कोई कमी नहीं है। यहां एक से बढ़कर एक बड़े और पुराने किले हैं, जो आने वालों को चकित कर देते हैं। एक ऐसा ही किला है जो भारत में मौजूद किलों में सबसे पुराना किला माना जाता है। इसे कांगड़ा किले के नाम से जाना जाता है, जो हिमाचल प्रदेश में 463 एकड़ में फैला है। हिमाचल में मौजूद यह किला अन्य किलों में सबसे बड़ा है।

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यह किला इतना पुराना है कि यह कब बना, आज तक कोई भी नहीं जान पाया है। अनुमान लगाया जाता है कि यह ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में भी मौजूद था। यह जानकारी पुख्ता तो नहीं है लेकिन अंदाज ही है कि इसका निर्माण कांगड़ा राज्य (कटोच वंश) के राजपूत परिवार ने करवाया था, जो खुद को प्राचीन त्रिगत साम्राज्य का वंशज होना मानते थे। त्रिगत साम्राज्य का उल्लेख महाभारत में मिलता है। कांगड़ा किले का इतिहास भी काफी रोचक रहा है। एक अन्य अनुमान यह भी है कि कांगड़ा के शासकों की निशानी यह किला भूमाचंद ने बनवाया था।

बाणगंगा नदी के किनारे बना यह किला 350 फीट ऊंचा है। इस किले पर अनेक हमले हुए हैं। किले के सामने लक्ष्मीनारायण और आदिनाथ के मंदिर बने हुए हैं। किले के भीतर दो तालाब हैं, एक तालाब को कपूर सागर के नाम से जाना जाता है।

पुराने समय में इस पर कब्जा करने के लिए कई युद्ध हुए हैं। सबसे पहले कश्मीर के राजा श्रेष्ठ ने सन् 470 में इस पर हमला किया। सन् 1886 में यह किला अंग्रेजों के अधीन हो गया। 1789 ईस्वी में यह किला कई युद्धों और संघर्षों के बाद फिर कटोच वंश के अधिकार में आ गया था।

राजा संसार चंद द्वितीय ने इस प्राचीन किले को जीत लिया था। इसके बाद 1828 ईस्वी तक यह किला कटोच वंशजों के पास ही रहा, लेकिन राजा संसार चंद द्वितीय की मृत्यु के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इस किले को जीत लिया था। उसके बाद 1846 तक यह सिखों की देखरेख में रहा और बाद में इस पर अंग्रजों ने कब्जा कर लिया था। चार अप्रैल 1905 को आए एक भीषण भूकंप के बाद अंग्रजों ने इस किले को छोड़ दिया, लेकिन इससे किले को काफी नुकसान पहुंचा था। इसके कारण कई बहुमूल्य कलाकृतियां और इमारतें नष्ट हो गईं।

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यह किला अपने आप में इतिहास की कई कहानियां समेटे हुए है। आज भी इसे देखने आने वाले लोग प्राचीन भारतीय निर्माण की कला देखकर हैरान रह जाते हैं। यह किला काफी निर्जन स्थान पर है और इसके चारों तरफ हरियाली रहती है। यह किला लगभग दो किलामीटर की परिधि में आयताकार बना हुआ है। इसकी मोटी प्राचीरों को कंगूरों द्वारा सजाया गया है। इसमें तीन मार्ग है जिसके दोनों ओर बुर्ज लगाए गए हैं। इसके चारों तरफ खंदक है जो यमुना नदी से जुड़ी है जो किला के पूर्वी ओर बहती है। उत्तरी द्वार को परित्यक्त द्वार यानी बाहर निकलने का दरवाजा कहते हैं। इस किले पर कई छतरियां और ब्रेकटों का मिला-जुला स्वरूप दिखाई देता है। बाद में इस पुराने किले के बड़े दरवाजे बनाए गए और कुछ नई इमारतें भी बनवाईं गई हैं।

यहां बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। यही कारण है कि इस किले के परिसर में हर शाम भव्य साउंड एंड लाइट शो का आयोजन किया जाता है। इस तरह कांगड़ा के किले के प्रति लोगों का आकर्षण बना रहता है। इतिहास को जानने की इच्छा रखने वालों को इस किले से काफी जानकारी मिलती है।