पंद्रहवी शताब्दी का आठ दरवाजों वाला किला
किसी भी देश का इतिहास उस देश की पुरातत्वीय संपदा से पता चलता है। पुराने किले, मंदिर और महल ऐतिहासिक वैभव की कहानी कहते हैं। ऐसे ही पुराने किलों में राजस्थान के जोधपुर शहर का मेहरानगढ़ दुर्ग है। पंद्रहवी शताब्दी का यह विशाल किला, पथरीली चट्टानों वाली पहाड़ी पर मैदान से लगभग 125 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। आठ द्वारों और कई बुर्जों वाला यह किला दस किलोमीटर लंबी ऊंची- ऊंची दीवार से घिरा हुआ है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार दरवाजे हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार दरवाजे और जालीदार खिड़कियां हैं। इनमें से खास हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में कई राजसी साजो-सामान का संग्रह है। इसके अतिरिक्त पालकियां, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के चित्र, संगीत वाद्य, पोशाकों और फर्नीचर का भी संग्रह है।
भारत के पुराने किलों में से एक यह किला इतिहास के वैभव की जानकारियां समेटे हुए है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की 24 संतानों में से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर संभालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। इसके बाद उन्होंने अपने किले से 9 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार किया। इस पहाड़ी को भोर चिड़ियाटूंंक के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहां काफी पक्षी रहते थे। प्रकृति की इस सुंदरता से प्रभावित होकर राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस पहाड़ी पर किले की नींव रखी। उनके बाद महाराज जसवंत सिंह ने सन् 1638-78 के बीच इसे पूरा किया। मूल रूप से किले के सात द्वार हैं, इसमें एक आठवां गुप्त द्वार भी है। पहले द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं। अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण 1806 में महाराज मान सिंह ने अपनी जयपुर और बीकानेर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था। फतेह पोल अथवा विजय द्वार का निर्माण महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की याद में करवाया था।
जोधपुर के शासकों की कुलदेवी चामुंडा माता हैं। राव जोधा की भी अपनी कुलदेवी चामुंडा माता में अथाह श्रद्धा थी। इसी के चलते राव जोधा ने
1460 में मेहरानगढ़ किले के समीप चामुंडा माता का भव्य मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के पट आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा मां न केवल शासकों की बल्कि जोधपुर के अधिकांश निवासियों की कुलदेवी थीं। आज भी लाखों लोग इस देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों में यहां विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। पूर्वजों के बलिदान की वजह से होली के त्यौहार पर मेघवालों की गेर को किले में गाजे- बाजे के साथ जाने का अधिकार है, जो अन्य किसी को नहीं है। इस प्रकार मेहरानगढ़ का किला भारत के साथ ही राजस्थान में राव जोधा के इतिहास और परंपराओं का गवाह है।