भारत के गौरवशाली किले: इतिहास में सबसे बड़ा जौहर हुआ था लिए चंदेरी दुर्ग में

भारत में किलों का इतिहास काफी पुराना है। जहां जितने भी राजा हुए उनमें से ज्यादातर ने अपनी राजधानी और निवास किसी किले में ही रखा है, क्योंकि उस समय में सुरक्षा काफी महत्वपूर्ण थी। पुराने समय में कभी भी किसी राजा के आक्रमण का डर तो बना ही रहता था, लेकिन डाकुओं के बड़े गिरोह भी राजाओं के निवास पर हमले कर लूटमार कर देते थे। ऐसा ही है चंदेरी दुर्ग। यह किला मध्य प्रदेश के गुना के नजदीक अशोक नगर जिले है।

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चंदेरी का किला 230 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ था। यह जगह मालवा तथा बुंदेलखंड की सीमाओं पर होने से हमेशा महत्वपूर्ण रही है। पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यह किला बेहद सुरक्षित माना जाता था। प्रसिद्ध चंदेरी का युद्ध 1528 ई. लड़ा गया था, जिसमें हमलावरों से राजपूतों की लंबी लड़ाई चली। उस समय यह किला मेदनी राय खंगार के अधिकार में था, जिस पर काफी समय से हमलावरों की नजर थी। हमलावरों ने पहले चंदेरी के तत्कालीन राजा से यह किला मांगा। बदले में उन्होंने अपने जीते हुए कई किलों में से कोई भी किला देने की बात की, परंतु राजा चंदेरी का किला देने के लिए राजी नहीं हुए। मेदनी राय ने किला देने की बजाय युद्ध करना स्वीकार किया।

कहा जाता है कि दुश्मनों की सेना ने एक ही रात में एक पहाड़ी को ऊपर से नीचे तक काट कर एक ऐसी दरार बना डाली जिससे होकर उसकी पूरी सेना, हाथी और तोपें ठीक किले के सामने पहुंच गईं। राजपूत केसरिया पोशाक पहनकर मैदान में कूद पड़े और वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी, लेकिन सभी वीरगति को प्राप्त हुए। किले पर हमलावरों का अधिकार हो गया। इसके बाद किले में सुरक्षित क्षत्राणियों ने स्वयं को हमलावरों से अपमानित होने की बजाय अपनी जीवनलीला समाप्त करने का फैसला लिया। उन्होंने एक विशाल चिता बनाई और आग लगाकर उसमें कूद गईं। मध्ययुगीन इतिहास में यह सबसे बड़ा जौहर माना जाता है। बाद में हमलावरों को हराकर पूरनमल जाट ने इस किले को जीता, लेकिन दुष्ट हमलावरों ने धोखे से संधि करने के बहाने पूरणमल जाट को बुलाया और उसकी हत्या कर दी।

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आज भी हमलावरों द्वारा बनाया रास्ता टूटे किले के ऊपर से दिखता है। इसे ‘कटा पहाड़’ या ‘कटी घाटी’ के नाम से जाना जाता है। बाद में दक्षिण के पहाड़ को काटकर एक प्रवेशद्वार द्वार का निर्माण किया गया। इसके निर्माण के लिए 80 फीट ऊंची, 39 फीट चौड़ी और 192 फीट लंबाई में घाटी को काटा गया था। इसके दोनों ओर दो बुर्ज बनाए गए हैं, कटी घाटी के उत्तर दिशा में चट्टान को काटकर सीढ़ी का मार्ग बनाया गया है, जिससे द्वार के ऊपरी भाग में पहुंचा जा सकता है। द्वार पर लगे दो शिलालेखों से पता चलता है कि इस घाटी एवं द्वार का निर्माण सन 1490 में कराया गया था। खुदाई के दौरान यहां एक सीढ़ीनुमा रास्ता भी सामने आया है।

किले के अलावा आज के दौर में चंदेरी का नाम कशीदाकारी और साड़ियों के लिए जाना जाता है। देश-विदेश के लोग यहां का किला देखने तो आते ही हैं, साथ ही यहां की खूबसूरत साड़ियां भी ले जाते हैं।