राजा के बेटे थे भगवान श्रीराम, फिर भी नहीं था जीवन में विश्राम

धरती पर जन्म लेकर इंसान अपने जीवन यापन के लिए बहुत कुछ सीखता है और करता है. पूरा जीवन एक यात्रा की तरह होता है, जहाँ जहाँ इंसान जाता है, वहां से उसकी यादें, उसके किये कार्य, बहुत कुछ जुड़ जाता है. हम कहाँ पैदा होते हैं, ये मायने नहीं रखता, ज़रूरी ये होता है कि, परमात्मा ने हमें किस उद्देश्य से धरती पर भेजा है, यदि इतना समझ लिया तो यात्रा बहुत सुखद होगी. लेकिन एक बात और है, जो तय होती है, आपके भाग्य में जो लिखा है, वो आपको भोगना ही होगा, चाहे आप आम इंसान हों, या स्वयं ईश्वर का अवतार. जैसे भगवान श्रीराम ने राजा का पुत्र होकर भी कितनी सारी परेशानियों का सामना किया.

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प्रभु श्रीराम ने अपने पूरे जीवन में जो भी कार्य किये, अगर इंसान उन पर चलने का थोड़ा सा भी प्रयास करे, तो सारी चीजें सहजता से समाप्त हो जायेंगी. एक महान साम्राज्य के राजा के बेटे ने जितने कष्ट अपने जीवन में उठाये, उतना तो कोई सोच भी नहीं सकता, सुख और वैभव का त्याग करना आसान नहीं होता, जिनके पास नहीं होता, उनकी तो नीयति है, लेकिन होते हुए भी सब छोड़ देना, कितना मुश्किल होता है, ये समझने की आवश्यकता है.

उसके बाद वन वन भटकना, और हर हाल में दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहना, यही तो आदर्श हैं, जो महानता के उस पथ की तरफ लेकर जाते हैं, जिसमें सम्पूर्ण मानवजाति का कल्याण होता है.

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श्रीराम के दिखाए हुए आदर्श जीवन जीने का एक तरीका हैं, अगर इंसान ये सोचकर जिए कि, उसे अपनी जीवन यात्रा में कुछ ऐसा करके जाना है, जो आगे आने वाली पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करे, बस इसी सोच से इंसान स्वार्थ, लालच, बुराई, क्रोध, अहंकार और अज्ञानता के अन्धकार से बाहर निकल जाता है.