तो इसलिए नहीं लिया भगवान बलराम ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा

भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम को बहुत मानते थें। बलराम को शक्ति, आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और एक आदर्श पति का प्रतीक माना जाता हैं। बलराम के पराक्रम की कई गाथाओं का शास्त्रों में वर्णन किया गया हैं। मान्यता है कि बलराम भगवान विष्णु के शेषनाग के अवतार थें। कहीं-कहीं विष्णु के अवतारों में भी उनकी गणना होती हैं। शास्त्रों के अनुसार बलराम मां देवकी के सातवें गर्भ थें, लेकिन कंस की नजर मां देवकी की हर संतान पर थी। ऐसे में मां देवकी और वासुदेव के तप से मां देवकी के गर्भ को वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में प्रत्यापित कर दिया। हालांकि वासुदेव की पहली पत्नी के लिए संकट यह था कि लोग सवाल पूछेंगे कि पति कैद में हैं तो वह गर्भवती कैसे हुई? ऐसे में वह बलराम के जन्म के तुरंत बाद उन्हें नंद बाबा के यहां पलने के लिये छोड़ आई।

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बलराम बहुत पराक्रमी और शक्तिशाली थें। उन्होंने कई युद्ध लड़े और जीते। लेकिन उन्होंने ऐतिहासिक महाभारत के युद्ध में भाग नहीं लिया था। साथ ही बलराम यह भी चाहते थें कि भगवान श्रीकृष्ण भी इस युद्ध में भाग ना ले। बलराम ने श्रीकृष्ण को कई बार समझाया कि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं, इसलिए हमें इस युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए। ऐसे में श्रीकृष्ण ने इस समस्या का समाधान करने के लिए दुर्योधन से कहा था कि आप मुझे और मेरी सेना में से एक को चुन लो। दुर्योधन ने कृष्ण की सेना का चयन किया और इस तरह भगवान श्रीकृष्ण पांडवों की तरफ से युद्ध में शामिल हो गए, लेकिन बलराम नहीं हुए।

महाभारत में वर्णित है कि युद्ध के समय बलराम पांडवों की छावनी में गए थे और धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था कि मेरे लिए पांडव और कौरव दोनों ही एक समान हैं। भीम और दुर्योधन दोनों ही मेरे शिष्य हैं। मैंने दोनों को बराबर स्नेह करता हूँ। मैंने कृष्ण से भी युद्ध में शामिल नहीं होने के लिए कहा था, पर कृष्ण ने मेरी नहीं सुनी। पांडव और कौरव को लड़ते हुए देखना मुझे अच्छा नहीं लग रहा हैं। इसलिए मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं।