देश के इन महत्वपूर्ण कानूनों के बारे में जानना सभी के लिए अनिवार्य

1.यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO)

नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले अपराध जैसे सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट करने वाले लोगों पर सख्त कार्यावाही की जाती है. इस एक्ट के तहत बच्चो के साथ हो रहे यौन अपराधों को लेकर सख्त कानून बनाए गए. इस एक्ट को साल 2012 में लागू किया गया था.

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2. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)

इस एक्ट की शुरूआत साल 2007, 5 मार्च में हुई थी. इस एक्ट के तहत 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है और बाल मज़दूरी कराने वाले लोगों पर सख्त कार्यवाही होती है. इस एक्ट के तहत 18 साल के बच्चों को संरक्षण देना है.

3. अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)

इस एक्ट का उद्देश्य है कि विकट पर्यावरण और विकास संबंधी चुनौतियों के लिए व्यावहारिक समाधान को जल्द से जल्द खोजना. यह विभिन्न संरक्षण संगठनों से मिली जानकारी के आधार पर “रेड लिस्ट” जारी करता है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजातियों के विषय के बारे में जानकारी लोगों के समक्ष रखता है.

4. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act), 2006 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे समाज में बाल विवाह को रोकने हेतु लागू किया गया है.

अधिनियम के मुख्य प्रावधान

इस अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा.
इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है.
साथ ही बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है किंतु किसी महिला को कारावास से दंडित नहीं किया जाएगा.

5. जीवन साथी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना दंडनीय अपराध

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5(1) के मुताबिक हिंदू अब केवल एक शादी कर सकता है. यह कानून लागू होने से पूर्व कोई हिंदू एक से अधिक विवाह कर सकता था. लेकिन अब वैध विवाह के लिए जरूरी है कि एक स्त्री अथवा पति के जीवित रह रहे कोई दूसरा विवाह नहीं कर सकता. यदि कोई इस प्रकार विवाह करता है, तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 तथा 495 के तहत दंडनीय अपराध है. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 को इस प्रथम शर्त के उल्लंघन में विवाह अकृत तथा शून्य हो जाता है और इस तरह का विवाह प्रारंभ से ही एवं स्वत: शून्य होता है.