प्राचीन भारत का बड़ा शिक्षा केंद्र जगद्दल विश्वविद्यालय, जहां पढ़ते थे विदेशी छात्र

भारत में पुराने समय में शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था और शिक्षा के बड़े-बड़े केंद्र यहां थे। शिक्षा के उच्च मानदंडों के चलते यहां विदेशों से भी बड़ी संख्या में विद्यार्थी आते थे। शिक्षा के बड़े केंद्रों में उस वक्त सनातन धर्म के साथ ही बौद्ध संस्कृति का भी बड़ा योगदान रहा है। प्राचीन भारत में ऐसा ही एक बहुत महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र रहा है जगद्दल विश्वविद्यालय। यह एक महाविहार के साथ ही मुख्य तौर पर एक बौद्ध मठ था जो कभी भारत के बंगाल प्रांत का हिस्सा हुआ करता था। वर्तमान में यह क्षेत्र बांग्लादेश के अंतर्गत आता है।

ImageSource

कहा जाता है जगद्दल विश्वविद्यालय का निर्माण पाल वंश के बाद के राजाओं ने करवाया था। इसे पाल राजाओं द्वारा बनाए गए विशाल परिसर और संरचनाओं में गिना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार पाल वंश के राजा रामपाल ने लगभग 50 बौद्ध विहारों का निर्माण करवाया था, जिसमें जगद्दल महाविहार विशेष स्थान रखता है, क्योंकि यह उच्च शिक्षा का एक बड़ा केंद्र रहा है।

जगद्दल विश्वविद्यालय की प्रसिद्धि विदेशों में भी और देश में दूर-दूर तक फैली हुई थी। यह विश्वविद्यालय एक बौद्ध विहार तथा उस वक्त का बड़ा शिक्षा का केंद्र था, उस वक्त विश्वविद्यालय को महाविहार कहा जाता था। यह विश्वविद्यालय ग्यारहवीं शताब्दी के अंतिम चरण से बारहवीं शताब्दी के मध्य काल तक अपनी प्रसिद्धि के चरम पर था। आज के समय में इस विश्वविद्यालय की निशानियां बांग्लादेश के धामइरहाट उपजिला के जगद्दल गांव के निकट मौजूद हैं। ऐतिहासिक रूप से यह वरेन्द्र क्षेत्र के अंतर्गत आता है और भारतीय सीमा के पास ही स्थित है और पहाड़पुर के निकट है। इसकी स्थापना पाल राजवंश के अंतिम राजाओं में से एक रामपाल ने कराया था।देश के प्राचीन विश्वविद्यालयों में चीन का यात्री ह्वेनसांग पहुंचा था और उसने अपना जो यात्रा वृतांत लिखा था, वह अभी भी मौजदू है।

ImageSource

इससे भारत के कई पुराने शिक्षा केंद्रों का पता चलता है और पुराने अवशेषों की प्रामाणिकता बढ़ती है। देश में कश्मीर, जालंधर, कन्नौज (कान्यकुब्ज) जैसे कई नगर और इलाके थे, जहां चीनी यात्री ह्वेनसांग ने विद्या अध्ययन किया था। प्रमाण मिलता है कि मादीपुर (मंडावर) नामक स्थान के एक मठ में वह 4 महीने तक ठहरा था और उसने वहां के प्रधान मित्रसेन से ज्ञान-प्रस्थान शास्त्र का अध्ययन किया था। इसी तरह कान्यकुब्ज क्षेत्र के भद्र विहार में उसने 3 महीने तक पिटकों के आचार्य वीरसेन से शिक्षा प्राप्त की थी। बिहार के हिरण्य पर्वत यानी अब के मुंगेर में भी ह्वेनसांग पहुंचा था, जहां उसने संघ द्वारा रचित न्याय शास्त्र पढ़ा था। इस तरह भारत में प्राचीन शिक्षा केंद्रों के कई ऐतिहासिक सबूत हैं जो हमारे देश का गौरव पूरी दुनिया में बढ़ाते हैं।