भगवान शिव जी और भगवान विष्णु ने इस तरह तोड़ा रावण का अहंकार

आपने रावण द्वारा रचित शिव ताण्डव स्तोत्र जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌। तो सुना ही होगा। यह स्तोत्र रावण ने तत्काल बनाकर भगवान शिव के समक्ष गाया था और भोले भंडारी शिव प्रसन्न हो गए थे। सभी जानते हैं रावण महा शिवभक्त था, लेकिन वह कभी अहंकार का त्याग नहीं कर पाया। एक बार उसके मन में आया कि उसके इष्ट देव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं, क्यों न उन्हें स्वर्ण की लंका में ही स्थाई रूप से रखा जाए।

जब भगवान शिव ने लंका में जाने से इंकार कर दिया और बताया कि कैलाश ही उनका घर है।वे यहां से कहीं नहीं जाएंगे। इस बात पर अहंकार में डूबा रावण लंका में ले जाने के लिए कैलाश पर्वत को ही उठाने लगा। उसने कैलाश को थोड़ा सा उठा कर उसके नीचे अपना हाथ लगाया और समूचे पर्वत को कंधे पर उठाने के लिए बल लगाने लगा। भगवान शिव अपने भक्त रावण की इस उत्कंठा पर मन ही मन मुग्ध हो रहे थे, लेकिन वे रावण को सीख भी देना चाहते थे। रावण ने जैसे ही कैलाश उठाने के लिए उसके नीचे हाथ लगाया, भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से हल्का सा दबाया तो कैलाश पर्वत वापस अपनी जगह पर आ गया और उसमें रावण का हाथ दब गया। रावण दर्द से कराहते हुए शिव जी को पुकारने लगा और और क्षमा मांगते हुए उनकी स्तुति करने लगा। रावण गीत- संगीत सहित सभी कलाओं में निपुण था, उसने तत्काल संस्कृत में शिव तांडव स्तोत्र की रचना की और भगवान भोलेनाथ को सुनाने लगा। भोले भंडारी इस स्तुति से प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पैर के अंगूठे का दबाव हटा लिया और रावण ने कैलाश के नीचे से अपना हाथ खींच लिया।

रावण ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न देखकर उनसे लंका चलने का आग्रह किया। शिव जी मान गए लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि मैं, तुम्हारे साथ आत्मलिंग के रूप में चलूंगा,‌ और तुम, मुझे जहां रख दोगे, वहीं स्थापित हो जाऊंगा। रावण ‌इस बात पर तैयार हो गया, लेकिन शिवजी के इस निर्णय से तीनों लोक में हाहाकार मच गया। सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने सबको आश्वस्त किया कि सब ठीक हो जाएगा। इसके बाद भगवान विष्णु एक ग्वाल बालक के रूप में रावण के मार्ग में पहुंचे। भगवान की लीला से मार्ग में रावण को लघुशंका का आवेग सताने लगा। रावण इधर-उधर देखने लगा तो उसे एक ग्वाल बालक दिखाई दिया। रावण ने उसे स्वर्ण मुद्राएं देने का भरोसा दिलाया और कहा मुझे लघुशंका जाना है जब तक मैं वापस न आ जाऊं तुम इसे अपने हाथ में धारण किए रहना। बालक तुरंत तैयार हो गया और उसने रावण के हाथ से अपने हाथ में शिवलिंग ले लिया, साथ में यह भी कहा कि तुम शीघ्र ही आना, अन्यथा मैं शिवलिंग जमीन पर रख दूंगा। रावण तीव्र लघुशंका के आवेग से परेशान था उसने तुरंत स्वीकार कर लिया। रावण लघुशंका के लिए चला गया, लेकिन उसे काफी समय लग गया। वचन के अनुसार देर लग जाने पर बालक के रूप में भगवान विष्णु ने शिवलिंग वहीं जमीन पर रख दिया और भगवान भोलेनाथ वहीं स्थापित हो गए। इसके बाद रावण ने उस शिवलिंग को उठाने के लिए पूरी ताकत लगा दी लेकिन शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। हार मान कर रावण लंका लौट गया। इसी शिवलिंग को द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक कर्नाटक के बैजनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है।